सार्वभौमिकता की अवधारणा क्या है?

सार्वभौमिकता की अवधारणा क्या है?

इसे सुनेंरोकेंशाब्दिक दृष्टि से सार्वभौमिकता का आशय किसी संस्कृति विशेषता का प्रत्येक स्थान में प्रसार होना है। मैकिम मेरियट ने सार्वभौमिकता की प्रक्रिया का उल्लेख किसी ऐसी स्थिति के लिए किया है, जिसमें स्थानीय एवं लघु परम्पराओं से धीरे’-धीरे बहुल परम्परा का निर्माण होता है।

धर्म के सार्वभौमिक प्रकार कौन कौन से हैं?

इसे सुनेंरोकेंबौद्ध धर्म में भी सार्वभौमिकता की अवधारणा को अपनाया जाता है। बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय के अनुसार महात्मा बुद्ध एक सार्वभौमिक उद्धारकर्ता थे, बौद्ध बनने से पहले उन्होंने कसम खाई थी कि वे सभी प्राणियों को बचाएंगे। ईसाई धर्म में भी सार्वभौमिकता का मूल विचार सार्वभौमिक सामंजस्य से संबंधित है।

सार्वभौमिक वाद क्या है?

इसे सुनेंरोकेंविश्लेषी दर्शन में, सार्वभौमवाद या सार्वभौमिकता (universality) वह विचार है जो मानता है कि कुछ तथ्य है जो सभी देश-काल में सत्य है। सार्वभौम सत्य का विचार, सापेक्षवाद (relativism) के विपरीत विचार है। कुछ धर्मतन्त्रों (theologies) में सार्वभौमवाद उस चीज को कहा गया है जिसका अस्तित्व पूरे ब्रह्माण्ड में एक ही रूप में है।

माध्यमिक शिक्षा का सार्वभौमीकरण क्या है?

इसे सुनेंरोकेंविद्यार्थियों का सार्वभौमिक नामांकनः नामांकन के सार्वभौमिकरण का अर्थ है 6 से 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों का प्राथमिक विद्यालयों द्वारा नामांकन होना चाहिए। यह अनामांकित बच्चे का उपयुक्त आयु की कक्षा में नामांकन का प्रावधान करता है। ये कदम माध्यमिक स्तर पर नामांकन में स्वतः वृद्धि करते हैं ।

माध्यमिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण से क्या समझते हैं?

इसे सुनेंरोकेंमाध्यमिक शिक्षा का सार्वभौमीकरण (यूनिवर्सलाइज़ेशन ऑफ सॆकंडरी एजुकेशन, USE) की चुनौती का सामना करने के लिए माध्यमिक शिक्षा की परिकल्पना में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। इस सम्बन्ध में मार्गदर्शक तत्व हैं: कहीं से भी पहुंच, सामाजिक न्याय के लिए बराबरी, प्रासंगिकता, विकास, पाठ्यक्रम एवं ढांचागत पहलू।

संवेदनात्मक विकास क्या है?

इसे सुनेंरोकेंसंवेगात्मक विकास की परिभाषा किसी व्यक्ति, वस्तु एवं स्थिति के सम्बन्ध में सुख-दुख की अनुभूति कम या अधिक मात्रा में होती है। संवेग की अवस्था में आंगिक प्रक्रियाओं जैसे नाड़ी, श्वसन, ग्रन्थिस्त्रावों का एक विसरित उद्दीपन होता है। व्यक्ति की चिन्तन एवं तर्क शक्ति क्षीण हो जाती है। व्यक्ति आवेगी बल का अनुभव करता है।

सार्वभौम मताधिकार क्या है?

इसे सुनेंरोकेंसर्वजनीन मताधिकार (Universal suffrage) या ‘सर्वजनीन वयस्क मताधिकार’ (universal adult suffrage, general suffrage या common suffrage) का अर्थ है कि बिना किसी भेदभाव के सभी वयस्कों (एक निश्चित आयु से अधिक आयु वालों को) मताधिकार प्रदान करना।

धर्म दर्शन का मुख्य विषय क्या है?

इसे सुनेंरोकेंधर्म दर्शन विभिन्न धर्मों के बीच सामान्य धार्मिक सिद्धान्तों की स्थापना करने का प्रयास करता है। मानवतावाद, धर्मनिरपेक्षता, धार्मिक सहिष्णुता के लिए सामान्य सिद्धान्तों पर विचार और विभिन्न धार्मिक विभेदों के बीच धार्मिक एकता की संभावना, धर्म दर्शन के चिंतन की विषय वस्तु है।

दर्शन का स्वरूप क्या है?

इसे सुनेंरोकेंजिस प्रकार स्वरूप के बिना सामग्री नहीं और सामग्री के बिना स्वरूप नहीं उसी प्रकार धर्म के बिना दर्शन नहीं और दर्शन के बिना धर्म नहीं। दर्शन में तर्क और व्याख्या की प्रधानता है, परन्तु तर्क और व्याख्या के तो मूल उपादान धर्म से ही प्राप्त होते हैं। धार्मिक सत्य तो दार्शनिक व्याख्या के आधार-वाक्य हैं।