* कौन सा विकल्प फणीश्वर रेणु के जीवन काल को दर्शाता है?* १⃣ १९२१ १९७७ २⃣ १९१५ २००३ ३⃣ इनमें से कोई भी नहीं?

* कौन सा विकल्प फणीश्वर रेणु के जीवन काल को दर्शाता है?* १⃣ १९२१ १९७७ २⃣ १९१५ २००३ ३⃣ इनमें से कोई भी नहीं?

फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ (४ मार्च १९२१ औराही हिंगना, फारबिसगंज – ११ अप्रैल १९७७) एक हिन्दी भाषा के साहित्यकार थे।…

फणीश्वर नाथ “रेणु”
जन्म 4 मार्च 1921 अररिया, बिहार, भारत
मृत्यु 11 अप्रैल 1977 (उम्र 56)
व्यवसाय उपन्यासकार, संसमरणकार
उल्लेखनीय कार्यs मैला आँचल

जैनेंद्र कुमार का देहांत कब और कहां हुआ?

इसे सुनेंरोकेंदिल्ली लौटने पर इन्होंने व्यापार से अपने को अलग कर लिया। जीविका की खोज में ये कलकत्ते भी गए, परंतु वहाँ से भी इन्हें निराश होकर लौटना पड़ा। इसके बाद इन्होंने लेखन कार्य आरंभ किया। २४ दिसम्बर १९८८ को उनका निधन हो गया।

जैनेंद्र कुमार का पूर्व नाम क्या था?

इसे सुनेंरोकेंआरम्भ में इनका नाम आनंदीलाल था, किन्तु गुरुकुल में अध्ययन के लिय इनका नाम जैनेन्द्र कुमार रख दिया गया. सन् 1912 ई. में इन्होंने गुरुकुल छोड़ दिया.

बड़ी बहुरिया कौन थी?

इसे सुनेंरोकेंAnswer: बड़ी बहुरिया उस गाँव की लक्ष्मी थी। अपने गाँव की लक्ष्मी की दशा दूसरे गाँव में जाकर सुनाना उसे अपमान लगा। उसे यह सोचकर बहुत शर्म आई की उसके गाँव की लक्ष्मी इतने कष्ट झेल रही है और गाँव अब तक कुछ नहीं कर पाया।

संवदिया की क्या विशेषताएँ हैं और गाँववालों के मन में संवदिया की क्या अवधारणा है?

इसे सुनेंरोकें(च) संवाद को पहुँचाने में गोपनियता बहुत आवश्यक है। गाँववालों के मन में अवधारणा है कि संवदिया एक कामचोर, निठल्ला तथा पेटू आदमी होता है, जिसके पास कोई काम नहीं होता, वह संवदिया बन जाता है।

ऐतिहासिक उपन्यास कौन कौन से हैं?

इसे सुनेंरोकेंउनके ‘संगम’ (1928), ‘लगन’ (1929), ‘प्रत्यागत’ (1929), और ‘कुंडलीचक्र’ (1932) सामाजिक उपन्यास और ‘गढ़ कुंडार’ ((1929), ‘विराटा की पद्मिनी’ (1936), ‘झांसी की रानी’ (1937), जैसे उपन्यास स्वतंत्रता के पहले और ‘कचनार’, ‘मृगनयनी’, ‘अहिल्याबाई’, ‘भुवन विक्रम’, ‘माधव जी सिंधिया’.

मोहन राकेश का वास्तविक नाम क्या है?

इसे सुनेंरोकेंइनका वास्तविक नाम मदनमोहन मुगलानी था. नई कहानी आंदोलन के साहित्यकार मोहन राकेश की प्रसिद्ध कृतियाँ आषाढ़ का एक दिन, आधे अधूरे और लहरों के राजहंस मुख्य हैं.

जैनेंद्र की कहानी कौन सी है?

इसे सुनेंरोकेंकहानी संग्रह: फाँसी, जय संधि, वातायन, एक रात, धुयात्रा दोचिड़िया, पाजेब, नीलम देश की राजकन्या, खेल। उपन्यास: परख, सुनीता, त्यागपत्र।

पाजेब कहानी का उद्देश्य क्या है?

इसे सुनेंरोकें’पाजेब’ कहानी की रचना का उद्देश्य बालकों के मनोविज्ञान का चित्रण करना है। आशुतोष पर उसके पिता की क्या शंका थी? उत्तर: आशुतोष के पिता को शंका थी कि मुन्नी की एक पैर की पाजेब उसी ने ली है।

प्रश्न ३ मुंशी प्रेमचंद ने जैनेंद्र को भारत का क्या कहकर महिमामंडित किया है?

इसे सुनेंरोकें☆ मुंशी प्रेमचंद ने उन्हें भारत का गोर्की कहकर महिमामंडित किया था । ☆ जैनेंद्र कुमार को हिंदी के मनोवैज्ञानिक कथा साहित्य का जन्मदाता कहा जाता है ।

कौन सा विकल्प फणीश्वर रेणु के जीवन काल को दर्शाता है?

इसे सुनेंरोकेंफणीश्वर नाथ ‘रेणु’ का जीवन उतार-चढ़ावों व संघर्षों से भरा हुआ था। उन्होंने अनेक राजनीतिक व सामाजिक आंदोलनों में बढ़-चढ़कर भाग लिया। उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाई तथा 1950 में नेपाल के राणाशाही विरोधी आंदोलन में नेपाली जनता को दमन से मुक्ति दिलाने के लिए भी अपना योगदान दिया।

न्याय शास्त्र का अर्थ क्या है?

इसे सुनेंरोकेंवह शास्त्र जिसमें किसी वस्तु के यथार्थ ज्ञान के लिये विचारों की उचित योजना का निरुपण होता है, न्यायशास्त्र कहलाता है। यह विवेचनपद्धति है। न्याय, छह भारतीय दर्शनों में से एक दर्शन है। न्याय विचार की उस प्रणाली का नाम है जिसमें वस्तुतत्व का निर्णय करने के लिए सभी प्रमाणों का उपयोग किया जाता है।

फणीश्वर नाथ रेणु ने बाढ़ पर कौन कौन से रिपोर्ताज लिखे हैं?

इसे सुनेंरोकेंप्रश्न- फणीश्वर नाथ रेणु द्वारा लिखित सूखा और बाढ़ पर आधारित रिपोर्ताज कौन है? उत्तर- फणीश्वर नाथ रेणु द्वारा सूखा और बाढ़ पर लिखित रिपोर्ताज ‘ऋणजल-धनजल’ और ‘इस जल प्रलय में’ है।

फणीश्वर नाथ रेणु किसकी रचना है?

इसे सुनेंरोकेंउपन्यासकार फणीश्वरनाथ रेणु का एक बहुचर्चित उपन्यास ‘परती: परिकथा’ है. उपन्यास कुछ प्रेम संबंधों के सहारे भारत के आंचलिक समाज की सच्चाई को दिखाता है और अपने अंजाम तक पहुंचता है. बहुत कुछ रेणु की कालजयी रचना ‘मैला आंचल’ की तरह.

न्याय शास्त्र के रचयिता कौन है?

इसे सुनेंरोकेंन्याय शास्त्र का प्रमुख उद्देश्य ज्ञान के सत्यासत्य की परीक्षा करना है । न्यायसूत्र – यह न्याय शास्त्र का आदि ग्रन्थ माना जाता है । इसके रचयिता महर्षि गौतम हैं ।