तीन दोष क्या है?
इसे सुनेंरोकेंवात, पित्त, कफ – ये तीन शारीरिक दोष माने गये हैं। ये दोष असामान्य आहार-विहार से विकृत या दूषित हो जाते है इसलिए इसे ‘दोष’ कहा जाता है। शरीरगत् अन्य धातु आदि तत्व इन्हे दोषों के द्वारा दूषित होता है। इन तीनो दोषों को शरीर का स्तम्भ कहा जाता है।
अर्थशास्त्र में दुर्लभता का क्या अभिप्राय है?
इसे सुनेंरोकेंदुर्लभता या अभाव (Scarcity) एक मूलभूत आर्थिक समस्या है। मनुष्य की आवश्यकताएँ लगभग असीम हैं, जबकि साधन सीमित हैं। इसका सीधा निष्कर्ष यह है कि समाज, मनुष्य की सारी आवश्यकताओं को पूरा करने में सदा असमर्थ है। 2-दुर्लभता वह स्थिति है जिसमें किसी संसाधन की कोई कीमत नहीं फिर भी उसकी माँग उसकी पूर्ति से बहुत ज्यादा है।
शरीर में दोष कितने प्रकार के होते हैं?
इसे सुनेंरोकेंआयुर्वेद के अनुसार मानव शरीर में तीन दोष पाए जाते हैं, जिन्हें वात, पित्त और कफ कहा जाता है। यही उसका भूत, भविष्य और वर्तमान तय करते हैं। इसमें से कोई एक दोष भी असामान्य होता है, तो मानव शरीर बीमार पड़ जाता है।
त्रिदोष को कैसे ठीक करें?
त्रिदोष के लिए आयुर्वेदिक उपाय
- गिलोय का सेवन करने से फायदा मिलेगा। इसके लिए सुबह गिलोय का जूस या फिर काढ़ा पी सकते हैं।
- अष्टवर्ग का सेवन करे।
- मेथी अंकुरित करके खाएं
- सुबह काली पेट लहसुन का सेवन करे। अगर आपको इसकी तासीर गर्म सह नहीं पाते हैं तो रात को पानी में बिगोकर इसका सेवन करे।
अर्थशास्त्र की दुर्लभता संबंधी परिभाषा के प्रतिपादक कौन हैं?
इसे सुनेंरोकेंदुर्लभता संबंधी दृष्टिकोण के प्रवर्तक प्रो. रॉबिन्स हैं। रॉबिन्स के अनुसार, “अर्थशास्त्र वह विज्ञान है, जो लक्ष्यों एवं उनके सीमित तथा वैकल्पिक उपयोगों वाले साधनों के परस्पर संबंधों के रूप में मानव व्यवहार का अध्ययन करता है।”
त्रिदोष क्या है विस्तारपूर्वक व्याख्या?
इसे सुनेंरोकेंवात, पित्त, कफ इन तीनों को दोष कहते हैं। इन तीनों को धातु भी कहा जाता है। धातु इसलिये कहा जाता है क्योंकि ये शरीर को धारण करते हैं। चूंकि त्रिदोष, धातु और मल को दूषित करते हैं, इसी कारण से इनको ‘दोष’ कहते हैं।
वात रोग कैसे होता है?
इसे सुनेंरोकेंजीवन शैली लगभग 12% वात रोग का कारण आहार से संबंधित होता है, और इसमें अल्कोहल, फ्रक्टोज-से मीठे किये गये पेय, मीट और समुद्री भोजन के उपभोग के साथ मज़बूत संबंध होता है। अन्य ट्रिगरों में शारीरिक बड़ी चोट और सर्जरी शामिल हैं।