सच्ची भक्ति क्या होती है?

सच्ची भक्ति क्या होती है?

इसे सुनेंरोकेंजो दूसरों की खुशी में सुख खोजता है, वास्तव में वही सच्चा भक्त है। जो दूसरों को सुख बांटता है, ऐसा व्यक्ति भगवान को बहुत प्रिय होता है। धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि निष्कपट व्यवहार करने वाले और प्राणी मात्र से प्रेम करने वाले ही सच्चे भक्त कहलाने के अधिकारी हैं।

हमें भगवान की पूजा क्यों करनी चाहिए?

इसे सुनेंरोकेंइश्वर के अस्तित्व की कल्पना अर्थात उसके अस्तित्व को स्वीकार करना और उसकी आराधना करना दोनों प्रथक प्रथक कल्पनाएँ हैं। शायद इश्वर की कल्पना ने ही उसे पूजा करने की प्रेरणा प्रदान की होगी, ताकि मानव अज्ञात शक्तियों के प्रकोप से बचा रहे और उसकी कृपा पाने से उसके जीवन में सुख समृद्धि का अस्तित्व बना रहे।

ईश्वर की सच्ची पूजा क्या है?

इसे सुनेंरोकेंAnswer. Answer: जो लोग श्रद्धा सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति करते है,उनके ईश्वर की पूजा सच्ची होती है।

सच्ची भक्ति कैसे करें?

इसे सुनेंरोकेंभगवान को चंदन, पुष्प अर्पण करना मात्र इतने में कोई भक्ति पूर्ण नहीं होती, यह तो भक्ति की एक प्रक्रिया मात्र है। भक्ति तो तब ही होती है जब सब में भक्तिभाव जागता है। ईश्वर सब में है। मैं जो कुछ भी करता हूं उस सबको ईश्वर देखते हैं, जो ऐसा अनुभव करता है उसको कभी पाप नहीं लगता।

पूजा क्यों होती है?

इसे सुनेंरोकेंकेवल शिवलिंग की ही पूजा क्यों होती है, इस विषय में शिव पुराण कहता है कि महादेव के अतिरिक्त अन्य कोई भी देवता साक्षात् ब्रह्मस्वरूप नहीं हैं। संसार भगवान शिव के ब्रह्मस्वरूप को जान सके इसलिए ही भगवान शिव ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट हुए और शिवलिंग के रूप में इनकी पूजा होती है।

ईश्वर की पूजा कब निरर्थक हो जाती है?

इसे सुनेंरोकेंजब आप किसी का दिल जानबूझकर दुखाते है। जब कोई सही ईश्वर के सिवा किसी और को ईश्वर बना के उसकी पूजा करने लगता है। पूजा एक निरर्थक प्रयास है। पूजा वही करता है जिसके मन मे गहरे खुद पूजे जाने की इच्छा हो।

भक्ति कैसे बढ़ाएं?

नियमित भक्ति करते रहने से हृदय कोमल हो जाता है। धीरे धीरे सारी भौतिक इच्छाओं से विरक्ति हो जाती है, तब वह कृष्ण के प्रीति अनुरुक्त हो जाता है।…

  1. भक्तों की संगति करना
  2. भगवान कृष्ण की सेवा में लगना
  3. श्रीमद् भागवत का पाठ करना
  4. भगवान के पवित्र नाम का कीर्तन करना
  5. वृन्दावन या मथुरा में निवास करना

सबसे अच्छी भक्ति कौन सी है?

इसे सुनेंरोकेंश्रवणं कीर्तन विष्णो: स्मरणं पादसेवनम् । नारद भक्तिसूत्र संख्या ८२ में भक्ति के जो ग्यारह भेद हैं, उनमें गुण माहात्म्य के अन्दर नवधा भक्ति के श्रवण और कीर्तन, पूजा के अंदर अर्चन, पादसेवन तथा वंदन और स्मरण-दास्य-सख्य-आत्मनिवेदन में इन्हीं नामोंवाली भक्ति अंतभुर्क्त हो जाती है।