सुदामा की दीनदशा को देखकर श्रीकृष्ण की क्या मनोदशा हुई अपने शब्दों में लिखिए?

सुदामा की दीनदशा को देखकर श्रीकृष्ण की क्या मनोदशा हुई अपने शब्दों में लिखिए?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर : सुदामा की दीनदशा को देखकर श्रीकृष्ण को अत्यन्त दुख हुआ। दुख के कारण श्री कृष्ण की आँखों से अश्रुधारा बहने लगी। उन्होंने सुदामा के पैरों को धोने के लिए पानी मँगवाया। परन्तु उनकी आँखों से इतने आँसू निकले की उन्ही आँसुओं से सुदामा के पैर धुल गए।

कृष्ण ने सुदामा का स्वागत कैसे किया class 8?

इसे सुनेंरोकेंजब सुदामा दीन-हीन अवस्था में कृष्ण के पास पहुँचे तो कृष्ण उन्हे देखकर व्यथित हो उठे। उनकी फटी हुई एड़ियाँ व काँटे चुभे पैरों की हालत उनसे देखी न गई। परात में जो जल सुदामा के चरण धोने हेतु मँगवाया गया था उसे कृष्ण ने हाथ न लगाया। अपने आँसुओं के जल से ही उनके पाँव धो डाले।

सुदामा कृष्ण से मिले तो कृष्ण ने क्या किया?

इसे सुनेंरोकेंसुदामा एक दरिद्र ब्राह्मण थे। यह अंतर उनकी सच्ची मैत्री में बीच नहीं आया। सुदामा श्रीकृष्ण से मिलने द्वारका गए। उन्होंने भगवान कृष्ण को भेंट करने के लिए एक बहुत ही विनम्र उपहार रखा।

4 सुदामा की दीन हीन दशा देखकर कृष्ण की क्या प्रतिक्रिया हुई?

इसे सुनेंरोकेंAnswer: सुदामा की दीन दशा देखकर कृष्ण को बहुत दुख हुआ। कृष्ण जो दया के सागर है वे अपने मित्र के लिए फूट-फूट कर रोने लगे। उन्होंने सुदामा के पैरों को धोने के लिए न तो परात उठाई और न ही पानी; उन्होंने अपने मित्र के पैरों को अपने आंसुओं से धोया, जो उनकी अंतर्मन की पीड़ा को स्पष्ट करता है।

सुदामा को क्या नही मिल पा रहा था?

इसे सुनेंरोकेंकैधों परयो कहुँ मारग भूलि, कि फैरि कै मैं अब द्वारका आयो।। भौन बिलोकिबे को मन लोचत, अब सोचत ही सब गाँव मझायो। पूँछत पाड़े फिरे सब सों, पर झोपरी को कहुँ खोज न पायी। सुदामा को क्या नहीं मिल पा रहा था?

कृष्ण ने अपने सखा सुदामा का अतिथि सत्कार कैसे किया?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर: कविता ‘सुदामा चरित’ में श्री कृष्ण ने अपने गरीब सखा सुदामा के दुःख को अपना दुःख माना। जब सुदामा उनके पास आए तो उनका देवतुल्य स्वागत किया, आदर-सत्कार किया और अपने अभिन्न मित्र के दुःख दूर करने में कोई कसर न छोड़ी। उन्होंने सुदामा के साथ अपनी मित्रता निभाई।

श्रीकृष्ण ने सुदामा के पोटली छिपाने के पीछे क्या उलाहना दी?

इसे सुनेंरोकेंश्रीकृष्ण ने सुदामा के पोटली छिपाने पर यह उलाहना दिया कि भाभी के अमृत भर चावल मुझ दंत क्या नहीं? क्या अभी भी तुम्हारी चोरी की आदत नहीं गई? उन्होंने बचपन में गुरुमाता द्वारा दिए चने, सुदामा द्वारा खा जाने की बात याद करवा दी। “चोरी की बान में ही जू प्रवीने।”