वह तोड़ती पत्थर कविता की मूल संवेदना क्या है?

वह तोड़ती पत्थर कविता की मूल संवेदना क्या है?

इसे सुनेंरोकेंमजदूर वर्ग की दयनीय दशा को उभारने वाली एक मार्मिक कविता है। कवि कहता है कि उसने इलाहाबाद के मार्ग पर एक मजदूरनी को पत्थर तोड़ते देखा। वह जिस पेड़ के नीचे बैठकर पत्थर तोड़ रही थी वह छायादार भी नहीं था, फिर भी विवशतावश वह वहीं बैठे पत्थर तोड़ रही थी। उसका शरीर श्यामवर्ण का था, तथा वह पूर्णत: युवा थी।

वह तोड़ती पत्थर कविता का क्या संदेश देती है?

इसे सुनेंरोकेंइस कविता में कवि ‘निराला’ जी ने एक पत्थर तोड़ने वाली मजदूरी के माध्यम से शोषित समाज के जीवन की विषमता का वर्णन किया है। कविता का भाव सौंदर्य की दृष्टि से बहुत ही अद्भुत है। सड़क पर पत्थर तोड़ती एक मजदूर महिला का वर्णन कवि ने अत्यंत सरल शब्दों में किया है। वो तपती दोपहरी में बैठी हुई पत्थर तोड़ रही है।

कोई न छायादार पेड़ से कवि का क्या मतलब है?

इसे सुनेंरोकेंआप जानते हैं कि ‘निराला’ सिद्ध कवि हैं। वे शब्दों और वर्ण्यवस्तु का चयन विशेष आशय से करते हैं। जैसे इन्हीं पंक्तियों में देखिए : “कोई न छायादार/पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार श्याम तन, भर बँधा यौवन/नत नयन प्रिय, कर्म-रत मन”। कवि प्रारंभ के वाक्य में ही कहता है – ‘वह तोड़ती पत्थर ।

वह तोड़ती पत्थर कविता का प्रतिपाद्य क्या है?

इसे सुनेंरोकें’वह तोड़ती पत्थर’ में कवि नें मज़दूरनी के माध्यम से शोषक एवं शोषितों के जीवन की विषमताओं का वर्णन किया है। इस कविता के माध्यम से उन्होने बताया है कि कैसे प्रतिकूल वातावरण में भी शोषित वर्ग कितनी ईमानदारी और मेहनत से कम करके पेट अपना पेट पालते हैं । वहीं शोषक वर्ग किस भांति शोषित वर्ग का शोषण करता है ।

तोड़ती पत्थर कविता में कौन सा रस है?

इसे सुनेंरोकेंपूँजीवादी व्यवस्था द्वारा किए जा रहे शोषण को देखकर निराला बहुत बेचैन होते थे। उनकी अनेक रचनाओं में यह बेचैनी और पीड़ा झलकती है। ‘वह तोड़ती पत्थर’ कविता में भी श्रमिक नारी के जीवन और उसके प्रति समाज की हृदयहीनता का अंकन किया गया है।

वह तोड़ती पत्थर कविता में समाज के स्वरूप का सजीव चित्रण प्रस्तुत किया गया है क्या यह आज के समाज का यथार्थ सत्य है?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर- सूर्यकांत त्रिपाठी जी इारा रचित ‘ वह तोड़ती पत्थर ‘ कविता आज के समय का सजीव चित्रण करती है। इस कविता में यथार्थ सत्य है की बात भी बिल्कुल सही है। कविता में बताया गया कि हमारे समाज में दो तरह के लोग रहते हैं- शोषक और शापित। कवि की सहानुभूति शोषित वर्ग के लोगों के साथ है।

सामने तरू मालिका अट्टालिका प्रकार से क्या आशय है?

इसे सुनेंरोकें✎… ‘सामने तर मालिका अट्टालिका प्राकार’ से आशय यह है कि वह स्त्री कड़ी धूप में पत्थर तोड़ रही है, लेकिन उसके लिए पल-भर सुस्ता लेने के लिए आसपास कोई भी छायादार पेड़ नहीं है, जबकि उसके ठीक सामने ही एक विशाल भवन था, जिसमें पंक्ति में अनेक पेड़ लगे थे। कवि का कहने का भाव यह है कि गरीबों के लिए कोई भी सुख नहीं है।

वह तोड़ती पत्थर कविता में किसका वर्णन कर रहा है?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर : वह तोड़ती पत्थर ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ द्वारा रचित एक मर्मस्पर्शी कविता है। इस कविता में कवि ‘निराला’ जी ने एक पत्थर तोड़ने वाली मजदूरी के माध्यम से शोषित समाज के जीवन की विषमता का वर्णन किया है।

भिक्षुक कविता में कौन सा रस है?

इसे सुनेंरोकेंकवि का मानवतावादी स्वर प्रमुख है। सामाजिक विषमता पर व्यंग्य किया गया है। (2) ‘कलेजे के टुकङे होना’ मुहावरे का प्रयोग सटीक है।

वह तोड़ती पत्थर कविता में कवि ने किसकी व्यथा गाई है 1 Point माँ मजदूरनी महिला स्त्री?

इसे सुनेंरोकें’तोड़ती पत्थर’ कविवर निराला रचित एक यथार्थवादी कविता है। इस कविता में कवि ने एक गरीब मजदूरिन की विवशता और कठोर श्रम-साधना का बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया है। कवि एक दिन इलाहाबाद के एक राजपथ पर एक पेड़ के नीचे एक दीन-हीन संघर्षरत मजदूरिन को पत्थर तोड़ते देखता है। वह जिस पेड़ के नीचे बैठी है वह छायादार नहीं है।

वह तोड़ती पत्थर कविता में सामने तरु मालिका अट्टालिका प्राकार से क्या आशय है?

इसे सुनेंरोकेंपूँजीवादी व्यवस्था द्वारा किए जा रहे शोषण को देखकर निराला बहुत बेचैन होते थे। उनकी अनेक रचनाओं में यह बेचैनी और पीड़ा झलकती है। ‘वह तोड़ती पत्थर’ कविता में भी श्रमिक नारी के जीवन और उसके प्रति समाज की हृदयहीनता का अंकन किया गया है। निराला का अपना जीवन भी कष्ट भोगते हुए बीता।