मक्खनपुर पढ़ने जाने वाली बच्चों की टोली रास्ते में पड़ने वाले कुँए में ढेला क्यों फेंकती थी?

मक्खनपुर पढ़ने जाने वाली बच्चों की टोली रास्ते में पड़ने वाले कुँए में ढेला क्यों फेंकती थी?

इसे सुनेंरोकेंबच्चे स्वभाव से नटखट होते हैं। मक्खनपुर पढ़ने जाने के रास्ते में एक सूखा कुआँ था। उसमें एक साँप गिर गया था। अपने नटखट स्वभाव के कारण साँप को तंग करने और उसकी फुसकार सुनने के लिए बच्चे कुएँ में ढेले फेंका करते थे।

बच्चों की टोली पढाई करने कहाँ जाती थीं?

इसे सुनेंरोकेंउसे मार पड़ेगी और इसी पिटने के भय से वह सहमा-सहमा घर पहुँचा। प्रश्न 2: मक्खनपुर पढ़ने जाने वाली बच्चों की टोली रास्ते में पड़ने वाले कुएँ में ढेला क्यों फेंकती थी? उत्तर : बच्चे स्वभाव से नटखट होते हैं।

बच्चों की टोली रास्ते में पड़ने वाले कुएं में क्या फेंका करती थी?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर: मक्खनपुर पढ़ने जाने वाली बच्चों की टोली रास्ते में पड़ने वाले कुएँ में ढ़ेला जरूर फेंकती थी। वे बच्चे ऐसा इसलिए करते थे कि उन्हें ढ़ेला फेंके जाने पर आने वाली आवाज को सुनकर बड़ा मजा आता था।

चिट्ठियां हासिल करने के बाद लेखक कितनी ऊंचाई चढ़ा?

इसे सुनेंरोकेंपरन्तु लेखक ने कुएँ से चिट्ठियाँ निकालने का निर्णय लिया। उसने अपनी और अपने भाई की धोतियाँ कुछ रस्सी मिलाकर बाँधी और धोती की सहायता से वह कुएँ में उतरा। अभी 4-5 गज ऊपर ही था कि साँप फन फैलाए हुए दिखाई दिया।

लेखक को अपने डंडे से प्यार क्यों था उस डंडे ने लेखक का अंत तक साथ कैसे दिया स्मृति पाठ के आधार पर बताइए?

इसे सुनेंरोकेंलेखक के गाँव से मक्खनपुर जाने वाली राह में 36 फीट के करीब गहरा एक कच्चा कुआँ था। उसमें एक साँप न जाने कैसे गिर गया था। मक्खनपुर पढ़ने जाने वाली बच्चों की टोली उस कुएँ में इसलिए ढेले फेंकती थी ताकि साँप क्रुद्ध होकर फुफकारे और बच्चे उस फुफकार को सुन सकें। यह कथन लेखक की बदहवास मनोदशा को स्पष्ट करता है।

बच्चों की टोली का क्या नाम था?

इसे सुनेंरोकेंमक्खनपुर पढ़ने जाने वाले बच्चों की टोली पूरी वानर टोली थी। उन बच्चों को पता था कि कुएँ में साँप है। वे ढेला फेंककर कुएँ में से आने वाली उसकी क्रोधपूर्ण फुँफकार सुनने में मजा लेते थे। कुएँ में ढेला फेंककर उसकी आवाज तथा उससे सुनने के बाद अपनी बोली की प्रतिध्वनि सुनने की लालसा उनके मन में रहती थी।

आम के बगीचे से घर की ओर आते हुए बच्चों की टोली में सबसे शरारती और उद्दंड बच्चा कौन था?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर : मक्खनपुर पढ़ने जाने वाली बच्चों की टोली के सभी बच्चे बहुत शरारती थे। लेखक भी उनमें से एक था।

गाँव से मक्खनपुर जाते समय लेखक कहाँ ढेला फेंका करते थे?

इसे सुनेंरोकेंलेखक और उसके साथ अन्य बच्चे मक्खनपुर पढ़ने जाते थे। उसी रास्ते में छत्तीस फुट गहरा सूखा कच्चा कुआँ था। लेखक ने एक स्कूल से लौटते हुए उसमें झाँक कर देखा और एक ढेला इसलिए फेंका ताकि वह ढेले की आवाज़ सुन सके, पर ढेला गिरते ही उसे एक फुसकार सुनाई दी।

फल किसी दूसरी शक्ति पर निर्भर करता हैं दूसरी शक्ति क्या है स्मृति पाठ के आधार पर बताएँ?

इसे सुनेंरोकें’फल तो किसी दूसरी शक्ति पर निर्भर है’- पाठ के सदंर्भ में इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए । मनुष्य तो कर्म करता है। इस पाठ में लेखक ने चिट्‌ठियाँ प्राप्त करने के लिए भरसक प्रयास किया और उसे सफलता मिल ही गई गीता में भी कहा गया है कि ”कर्मण्येव वाधिकारस्ते मा फलेषु कदावन कार्य के प्रति आसक्ति रखना उचित नहीं है।

इसे सुनेंरोकेंउत्तर : बच्चे स्वभाव से नटखट होते हैं। मक्खनपुर पढ़ने जाने के रास्ते में एक सूखा कुआँ था। उसमें एक साँप गिर गया था। अपने नटखट स्वभाव के कारण साँप को तंग करने और उसकी फुसकार सुनने के लिए बच्चे कुएँ में ढेले फेंका करते थे।

लेखक ने अपने डंडे को नारायण क्यों कहा है?

इसे सुनेंरोकेंAnswer: लेखक ने डंडे को नारायण वाहन इसलिए कहा क्योंकि उस डंडे ने बहुत सारे सांप मारे थे।

लेखक को इस बात का एहसास कब हुआ कि कुएं में से चिट्टियां लेना आसान नहीं होगा?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर:- यह घटना १९०८ में घटी थी और लेखक ने इसे अपनी माँ को १९१५ में सात साल बाद बताया था। उन्होंने इसे लिखा तो और भी बाद में होगा। अतः उन्हें पूरी घटना का स्मरण नहीं। लेखक ने जब ढेला उठाकर कुएँ में साँप पर फेंका तब टोपी में रखी चिट्ठियाँ कुएँ में गिर गई।

हामिद खाँ पाठ के लेखक कौन हैं?

हामिद पाकिस्तानी मुसलमान था। वह तक्षशिला के पास एक गाँव में होटल चलाता था। लेखक तक्षशिला के खंडहर देखने के लिए पाकिस्तान आया तो हामिद के होटल पर खाना खाने पहुँचा। वहीं उनका आपस में परिचय हुआ।…Free Resources.

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माँ ने लेखक को क्या दिया था?

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लेखक बच्चों के लिए क्या इकट्ठा करते थे *?

इसे सुनेंरोकेंAnswer: ) उस देश के कुछ खाद्य पदार्थ– योगर्ट, सूप, सफ़ेद सेम, आइसक्रीम, चावल, स्ट्यू, चिल्ले जैसी मिठाई जिसमें खट्टी बेरी का गूदा भरा हुआ होता है, सेवइयाँ उबली सूप में, ब्रेड बटर मार्मलेट आदि हैं।

इसे सुनेंरोकेंलेखक ने कुएं के बगल से थोड़ी सी मिट्टी मुट्ठी में लेकर सांप के दाई और फेंकी। सांप तुरंत उस मिट्टी पर झपटा और लेखक ने तेज़ी से डंडा उठा लिया। इसके बाद वह डंडा लेकर ३६ फुट ऊपर चढ़कर कुएं के बाहर सही सलामत पहुंच गया।

कुएँ में साँप होिे का पता िेिक एवं अन्य बच्चों को कैसे चिा?

इसे सुनेंरोकेंलेखक और उसके साथ अन्य बच्चे मक्खनपुर पढ़ने जाते थे। उसी रास्ते में छत्तीस फुट गहरा सूखा कच्चा कुआँ था। लेखक ने एक स्कूल से लौटते हुए उसमें झाँक कर देखा और एक ढेला इसलिए फेंका ताकि वह ढेले की आवाज़ सुन सके, पर ढेला गिरते ही उसे एक फुसकार सुनाई दी। इस तरह वे जान गए कि कुएँ में साँप है।

लेखक क्या तोड़कर खा रहे थे?

इसे सुनेंरोकेंसन् 1908 ई० में दिसंबर या जनवरी के महीने में शाम के साढ़े तीन या चार बजे जब लेखक अपने छोटे भाई के साथ झरबेरी से बेर तोड़कर खा रहा था, उन्हें (लेखक को) उनके बड़े भाई ने बुलवाया। लेखक पिटाई के भय से डर गया, परंतु भाई साहब ने लेखक को मक्खनपुर डाकखाने में पत्र डालने के लिए दिए जो बहुत आवश्यक थे।