शरणागति कितने प्रकार की होती है?
इसे सुनेंरोकेंशरणागति दो प्रकार की होती है-स्वतंत्र तथा आंगिक। स्वतंत्र शरणागति निरपेक्ष साधन है, जिसमें किसी आंगिक साधन की अपेक्षा नहीं रहती, जबकि आंगिक शरणागति जिस साधन के अंग रूप में की जाती है उसे पुष्ट करती है। स्वतंत्र शरणागति भले ही अन्य साधनों की अपेक्षा न रखती हो, परंतु अपने अंगों की पूर्णता की अपेक्षा रखती है।
शरणागत का शाब्दिक अर्थ क्या होता है?
इसे सुनेंरोकेंशरणागत का शाब्दिक अर्थ है शरण में आया हुआ, किंतु इसका निहितार्थ आध्यात्मिक संदर्भ में ईश्वर के प्रति संपूर्ण समर्पण से है। अपनी रक्षा के लिए शरण में वही आता है जिसे कहीं से किसी आपदा का आभास होता है। सभी आपदाओं, विपत्तियों, प्रवृत्तियों व समस्याओं के निराकरण के एकमात्र आधार ईश्वर ही हैं।
कौन से चार प्रकार के मनुष्य ईश्वर की शरण में जाते हैं?
इसे सुनेंरोकेंभगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश देते समय में बताया कि चार प्रकार के लोग शरणागत नहीं हो पाते। * पहले तो वे हैं, जो भगवान को नहीं जानते। * दूसरे वे हैं, जो हमेशा बुराई किया करते हैं। * तीसरे वे लोग हैं, जो भगवान को जानते और मानते हैं, मगर शरण में नहीं जाना चाहते।
परमात्मा के लिए भक्ति पथ का क्या अर्थ है?
इसे सुनेंरोकेंआगे चलकर पुराणों में भी इस बात का उल्लेख किया गया है कि भक्त भले ही किसी भी जाति-पाँति का हो, वह सच्ची भक्ति से ईश्वर की कृपा प्राप्त कर सकता है। भक्ति की विचारधारा इतनी अधिक लोकप्रिय हो गई कि बौद्धों और जैन मतावलंबियों ने भी इन विश्वासों को अपना लिया। संगीतबद्ध कर दिया करते थे।
शरणागत का समास विग्रह क्या होगा?
इसे सुनेंरोकेंशरणागत का समास विग्रह क्या है? शरणागत का समास विग्रह शरण को आगत है।
निष्काम भक्ति क्या है?
इसे सुनेंरोकेंनिष्काम भाव से की गयी भक्ति फलदायी होती है। जो मनुष्य अहंकार के वशीभूत होकर कर्म करता है, वह पाप का भागीदार बन जाता है। और जो निष्काम भाव से मेल जोल के साथ सुख दुख में दूसरों का सहयोग करता है वह ईश्वर के बहुत निकट पहुंच जाता है। यह उद्गार एटा रोड पर चल रही श्रीमद् भागवत कथा में आचार्य सुशील शास्त्री ने व्यक्त किये।
भक्ति कैसे होती है?
इसे सुनेंरोकेंभगवान को चंदन, पुष्प अर्पण करना मात्र इतने में कोई भक्ति पूर्ण नहीं होती, यह तो भक्ति की एक प्रक्रिया मात्र है। भक्ति तो तब ही होती है जब सब में भक्तिभाव जागता है। ईश्वर सब में है। मैं जो कुछ भी करता हूं उस सबको ईश्वर देखते हैं, जो ऐसा अनुभव करता है उसको कभी पाप नहीं लगता।