कंक किसका नाम था?

इसे सुनेंरोकेंयुधिष्ठिर राजा विराट का मनोरंजन करने वाले कंक बने। जिसका अर्थ होता है यमराज का वाचक। यमराज का ही दूसरा नाम धर्म है और वे ही युधिष्ठिर रूप में अवतीर्ण हुए थे।

महाभारत का मूल नाम क्या है?

इसे सुनेंरोकेंमहाभारत के मूल संस्करण को ‘जय संहिता’ नाम दिया गया था। महर्षि वेद व्यास ने इसका वर्णन किया था और भगवान् गणेश ने इसे लिखा था। इस मूल महाकाव्य में केवल 8800 श्लोक थे और यह संस्करण सर्वप्रथम ‘जय’ कहलाया, उसके पश्चात् इसे ‘विजय’ कहा गया, और उसके उपरांत इसे ‘भारत’ नाम मिला और अंततः यह ‘महाभारत’ के नाम से विख्यात हुआ।

कौरवों की सेना में सबसे आगे कौन था?

इसे सुनेंरोकेंकौरवों की सेना में सबसे आगे कौन था? उत्तर: कौरवों की सेना में सबसे आगे दुःशासन था।

दुर्योधन को कैसे पता चला कि पांडव मत्स्य देश में छिपे हैं?

इसे सुनेंरोकेंप्रश्न-2 दुर्योधन को कैसे पता चला कि पांडव मत्स्य देश में छिपे हैं? उत्तर – हस्तिनापुर में कीचक के मारे जाने की खबर से दुर्योधन ने अनुमान लगाया कि पांडव मत्स्य देश में ही छिपे हैं और हो-न-हो कीचक का वध भीम ने ही किया होगा।

पितामह भीष्म ने दुर्योधन को क्या बात समझाई?

इसे सुनेंरोकेंपितामह भीष्म ने दुर्योधन को क्या बात समझाई? उत्तर: पितामह भीष्म ने दुर्योधन को समझाया कि प्रतिज्ञा का समय कल पूरा हो चुका है। तुम्हारी गणना में कुछ भूल हुई है।

महाभारत किसने लिखा और कब लिखा?

इसे सुनेंरोकेंवेद व्यास ने महाभारत कब लिखी थी? सम्पूर्ण तथ्यो से यह माना जा सकता है की महाभारत ५०००-३००० इसवी ईसा पूर्व या निशिचत तौर पर १९०० इसवी ईसा पूर्व रची गयी होगी, जो महाभारत मे वर्णित ज्योतिषिय तिथियो से मेल खाती है।

कौरवों ने अपने मित्रों द्वारा कितनी सेना इकट्ठी की थी?

इसे सुनेंरोकेंप्रश्न-8 पांडवों और कौरवों ने अपनी सेना किस प्रकार इकठ्ठी की? उत्तर – उपप्लव्य नगर में रहते हुए पांडवों ने अपने मित्र राजाओं को दूतों द्वारा संदेश भेजकर कोई सात अक्षौहिणी सेना एकत्र की। उधर कौरवों ने भी अपने मित्रों द्वारा काफ़ी बड़ी सेना इकट्ठी कर ली, जो ग्यारह अक्षौहिणी तक हो गई थी।

पांच पांडव ने मत्स्य देश म कौन कौन से वेश धारण कए थे?

इसे सुनेंरोकेंपांडव अपना-अपना वेश बदलकर राजा विराट के यहाँ चाकरी करने गए। विराट को लगा कि ये लोग कुशल प्रशासनिक हैं। अत: उनके आग्रह पर विश्वास दिलाने पर उनको सेवा में रखा और उनके मन मुताबिक कार्य में लगा दिया। राजा विराट के यहाँ युधिष्ठिर ने अपना नाम कंक रखा।