सूरदास की काव्यगत विशेषता क्या है?

सूरदास की काव्यगत विशेषता क्या है?

इसे सुनेंरोकेंसूरदास पुष्टि मार्ग के भक्त थे, उनकी भक्ति सखा भाव की है। सूरदास का काव्य ब्रज प्रदेश की सुन्दर प्रकृति के आकर्षक चित्रों से युक्त है। प्रकृति के आलम्बन, उद्दीपन रूपों की सुन्दर झाँकी सूरदास के काव्य में मिलती है। इस प्रकार भाव योजना की दृष्टि से सूरदास का काव्य पर्याप्त आकर्षक प्रभावशाली और उच्चकोटि का था।

कबीर की काव्यगत विशेषताएं बताइए?

इसे सुनेंरोकेंकबीर के दोहे आम बोलचाल की भाषा में ही रचे गए हैं जो आम जनमानस को बेहद आसानी से समझ में आ जाते थे। कबीर ने अपने दोहों में सामाजिक कुरीतियों और धार्मिक आडंबरों पर जोरदार कटाक्ष किया है। कबीर मैं अपने दोहों के माध्यम से ईश्वर की भक्ति की महत्ता स्पष्ट की है। उन्होंने गुरु के महत्व को स्पष्ट किया है।

विद्यापति की काव्यगत विशेषता क्या है?

इसे सुनेंरोकेंविद्यापति के काव्य की एक प्रमुख विशेषता यह भी है कि कहीं-कहीं उनकी कविताओं के बीच में गद्य के दर्शन भी होते हैं। कीर्तिलता ऐसा ही रचना है। इसे वर्णन की दृष्टि से देखें तो विद्यापति का काव्य वीर,शृंगार व भक्ति का अद्भुत समन्वय है। कीर्तिलता वीर रस प्रधान रचना है, वहीं पदावलीशृंगार व भक्ति का मिश्रण है।

सूरदास के पदों में कौन सा गुण है?

इसे सुनेंरोकेंसूरदास के पदों का शिल्प-सौंदर्य: सूरदास के पदों में गोपियों के श्री कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम की ओर संकेत किया गया है। उनका प्रेम एकनिष्ठ और सुदृढ़ है, जिसे वे कदापि नहीं छोड़ सकती। इस पद में कवि ने तत्सम, तद्भव शब्दावली युक्त साहित्यिक बृज भाषा का प्रयोग किया है। भाषा माधुर्य गुण युक्त सरल, सहज, मार्मिक है ।

सूरदास का काव्य रूप क्या है?

इसे सुनेंरोकेंसूरदास जी वात्सल्य रस के सम्राट माने जाते हैं। उन्होंने श्रृंगार और शान्त रसों का भी बड़ा मर्मस्पर्शी वर्णन किया है। महाकवि सूरदास हिन्दी के श्रेष्ठ भक्त कवि थे। उनका संपूर्ण काव्य ब्रजभाषा का श्रृंगार है, जिसमें विभिन्न राग, रागनियों के माध्यम से एक भक्त ह्रदय के भावपूर्ण उद्गार व्यक्त हुए हैं।

कबीरदास की भाषा की विशेषताएं?

इसे सुनेंरोकेंकबीरदास जन-सामान्य के कवि थे, अत: उन्होंने सीधी-सरल भाषा को अपनाया है। उनकी भाषा में अनेक भाषाओं के शब्द खड़ी बोली, पूर्वी हिन्दी, राजस्थानी, पंजाबी, ब्रज, अवधी आदि के प्रयुक्त हुए हैं, अत:, ‘पंचमेल खिचड़ी’ अथवा ‘सधुक्कड़ी’ भाषा कहा जाता है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इसे ‘सधुक्कड़ी’ नाम दिया है।

कबीर की काव्यगत विशेषताओं का वर्णन कीजिए ५०० शब्दों में?

इसे सुनेंरोकेंकबीरदास के काव्य की विशेषता गुरु-भक्ति, ईश्वर के प्रति अथाह प्रेम, वैराग्य सत्संग, साधु महिमा, आत्म-बोध तथा जगत-बोध की अभिव्यक्ति है। उन्होंने समाज में फैले हुए सभी प्रकार के भेदभाव को दूर करने का प्रयास किया।

विद्यापति के गुरु कौन थे?

इसे सुनेंरोकेंविद्यापति के गुरु का नाम पण्डित हरि मिश्र था और पिता का नाम गणपति ठाकुर था जो संस्कृत के उच्चकोटि के विद्वान और राजाश्रित कवि थे। वे तिरहुत (मिथिला) के राजा शिवसिंह और कीर्ति सिंह के राजदरबारी कवि थे। विद्यापति शैव सम्प्रदाय के कवि थे तथा उनकी पदावली में भक्ति एवं श्रृंगार का समन्वय दिखाई पड़ता है।

विद्यापति के काव्य भाषा क्या है?

इसे सुनेंरोकेंमैथिली विद्यापति की मातृभाषा थी । उस काल के साहित्य या उससे पूर्व भी ज्योतिरीश्वर ठाकुर रचित ‘वर्णरत्नाकर’ के अनुशीलन से पता चलता है कि मैथिली उस समय की पर्याप्त समुन्नत भाषा है । यह सर्वमान्य तथ्य है कि मैथिली में उन्होंने विपुल परिमाण में मुक्तक काव्य लिखे हैं और उन्हें हम ‘विद्यापति पदावली’ के नाम से जानते हैं ।