कबीर जी के शब्द?
Thursday, 17 April 2014
- सबद (पद)
- मोको कहाँ ढूँढ़े बंदे , मैं तो तेरे पास में ।
- ना मैं देवल ना मैं मसजिद , ना काबे कैलास में ।
- ना तो कौने क्रिया – कर्म में , नहीं योग वैराग में ।
- खोजी होय तो तुरतै मिलिहौं , पलभर की तलास में ।
- कहैं कबीर सुनो भई साधो , सब स्वासों की स्वास में॥
कबीर के काव्य में सतगुरु शब्द का अर्थ?
इसे सुनेंरोकेंकबीर के एक शब्द में सत्गुरु को सच्चा संत कहा गया है। भगवान राम के गुरु वसिष्ठ, त्रेता युग में सत्गुरु थे। स्वामी शंकर पुरुषोत्तम तीर्थ योग वासिष्ठ का संदर्भ देते हैं:-“वास्तविक गुरु वह है जो दृष्टि, स्पर्श, या अनुदेश से शिष्य के शरीर में आनंद संवेदन उत्पन्न कर दे”.
कवि ईश्वर से क्या मांगते हैं?
इसे सुनेंरोकेंउत्तर: कवि ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है। वह यह चाहता है कि वह हर मुसीबत का सामना खुद करे। भगवान उसे केवल इतनी शक्ति दें कि मुसीबत में वह घबड़ा न जाए। वह भगवान से केवल आत्मबल चाहता है और स्वयं सब कुछ के लिए मेहनत करना चाहता है।
कबीर दास जी स्वर से क्या मांगते हैं?
इसे सुनेंरोकेंव्याख्या – इस कबीर के दोहे में कबीरदास कहते हैं कि कबीर का किसी से ना प्रेम है न द्वेष है। कबीर को इन सब चीजों से क्या लेना वह तो ईश्वर की आराधना में निकला है ईश्वर की आराधना इन सब से परे है। कबीर सबकी खैर सबकी सलामती मांगता है।
कबीर के सबद की व्याख्या?
इसे सुनेंरोकेंअर्थ – संत कबीर कहते हैं पक्ष-विपक्ष के कारण सारा संसार आपस में लड़ रहा है और भूल-भुलैया में पड़कर प्रभु को भूल गया है। जो ब्यक्ति इन सब झंझटों में पड़े बिना निष्पक्ष होकर प्रभु भजन में लगा है वही सही अर्थों में मनुष्य है। हिन्दू मूआ राम कहि, मुसलमान खुदाई। कहै कबीर सो जीवता, दुहुँ के निकटि न जाइ।
साखी एवं सबद के आधार पर कबीर के बारे में तीन चार वाक्य लिखें?
इसे सुनेंरोकेंभाव-सौंदर्य – ज्ञान का महत्त्व प्रतिपादित करते हुए कबीर कहते हैं कि मनुष्य को ज्ञान रूपी हाथी की सवारी सहज गलीची डालकर करना चाहिए। ऐसा कहते हुए यदि कुत्ता रूपी संसार उसकी आलोचना करता है तो मनुष्य को उसकी परवाह नहीं करना चाहिए। अर्थात् मनुष्य को ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। ऐसा करते हुए उसे आलोचना की परवाह नहीं करना चाहिए।