सरहुल क्यों मनाया जाता है?

सरहुल क्यों मनाया जाता है?

इसे सुनेंरोकेंप्रकृति पर्व सरहुल वसंत ऋतु में मनाए जाने वाला आदिवासियों का प्रमुख त्यौहार है। वसंत ऋतु में जब पेड़ ‘पतझड़’ में अपनी पुरानी पतियों को गिरा कर टहनियों पर नई-नई पत्तियां लाने लगती है, तब सरहुल का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व मुख्यतः चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के तृतीय से शुरू होता है और चैत्र पूर्णिमा को समाप्त होता है।

सरहुल त्योहार कहाँ और कैसे मनाया जाता है?

इसे सुनेंरोकेंइस पर्व को झारखंड (Jharkhand) की विभिन्न जनजातियां अलग-अलग नाम से मनाती हैं. उरांव जनजाति इसे ‘खुदी पर्व’, संथाल लोग ‘बाहा पर्व’, मुंडा समुदाय के लोग ‘बा पर्व’ और खड़िया जनजाति ‘जंकौर पर्व’ के नाम से इसे मनाती है. सरहुल पूजा शुरू होने से पहले पाहन या पुजारी को उपवास करना होता है. वो सुबह की पूजा करते हैं.

सरहुल पर्व कौन मनाते हैं?

इसे सुनेंरोकेंसरहुल पर्व को झारखंड की विभिन्न जनजातियां अलग-अलग नाम से मनाती हैं। उरांव जनजाति इसे खुदी पर्व, संथाल बाहा पर्व, मुंडा बा पर्व और खड़िया जनजाति जंकौर पर्व के नाम से मनाते हैं।

सरहुल के दिन कौन से पेड़ की पूजा की जाती है?

इसे सुनेंरोकेंमुंडारी समाज मुंडा समाज के लोग सरहुल को बाहा परब के रुप में मनाते हैं, सखुआ पेड़ और सरजोम वृक्ष के नीचे इस समाज के लोगों का पूजा स्थल होता है. जब सखुआ की डाली पर फूल भर जाते हैं इसके बाद गांव के लोग एक निश्चित तिथि निर्धारित कर इस पर्व को मनाते हैं.

सरहुल त्योहार कितने दिनों तक मनाया जाता है?

इसे सुनेंरोकेंसभी सरहुल गीत गाते हुए नाचते-गाते हैं। ‘बा’ का शाब्दिक अर्थ है फूल अर्थात फूलों के त्योहार को ही ‘बा’ पोरोब कहते हैं। बा पर्व तीन दिनों तक मनाया जाता है।

संथाल के लोग सरहुल कब और कैसे बनाते हैं?

इसे सुनेंरोकेंसंथाल लोग फरवरी-मार्च में, तो ओरांव लोग इसे मार्च-अप्रैल में मनाते हैं। आदिवासी आमतौर पर प्रकृति की पूजा करते हैं। सरहुल के दिन विशेष रूप ‘साल’ के पेड़ की पूजा की जाती है। यही समय है जब साल के पेड़ों में फूल आने लगते हैं और मौसम बहुत ही खुशनुमा हो जाता है ।

झारखंड का कौन सा त्यौहार फसलों का त्योहार के रूप में जाना जाता है?

इसे सुनेंरोकेंसही उत्तर सरहुल है। सरहुल झारखंड के सबसे बड़े आदिवासी त्योहारों में से एक है। यह वसंत के मौसम के दौरान मनाया जाता है क्योंकि साल के पेड़ों पर फूल खिलते हैं। सरहुल का शाब्दिक अर्थ है ‘साल की पूजा’ और यह धरती माता को समर्पित है।