बांके बिहारी कैसे प्रकट हुए?
इसे सुनेंरोकेंबांके बिहारी की मूर्ति कैसे प्रकट हुई? मान्यता है, की बाके बिहारी जी की मूर्ति को किसी ने बनाया नही है, यह प्रतिमा अपने आप उत्पन्न हुई है। कहते है, की श्री हरिदास जी के अनन्य भक्ति से प्रसन्न होकर बाके बिहारी जी वृंदावन प्रकट हुए थे। बांके बिहारी मंदिर में भगवान की काले रंग की मूर्ति है, जो श्री हरिदास जी ने खोजी थी।
बांके बिहारी नाम कैसे पड़ा?
इसे सुनेंरोकेंश्री कृष्ण और राधा ने हरिदास के पास रहने की इच्छा प्रकट की लेकिन हरिदास जी ने कृष्ण से कहा कि प्रभु मैं तो संत हूं. आपको लंगोट पहना दूंगा लेकिन माता को नित्य आभूषण कहां से लाकर दूंगा. भक्त की बात सुनकर राधा कृष्ण की युगल जोड़ी एकाकार होकर एक विग्रह रूप में प्रकट हुई. हरिदास जी ने इस विग्रह को बांके बिहारी नाम दिया.
बांके बिहारी कब प्रकट हुए?
इसे सुनेंरोकेंइस दौरान दूर-दूर से आये श्रद्धालु भगवान बाँके बिहारी जी की जयकार करते हुए भक्तिमय नजर आए. मथुरा: आज है विहार पंचमी और आज के दिन ही जन-जन के आराध्य भगवान बांके बिहारी जी का प्राकट्य (Banke Bihari Prakatya Diwas 2021) हुआ था.
बिहारी किसका नाम है?
इसे सुनेंरोकेंभगवान श्रीकृष्ण और राधारानी के एकाकार रूप को स्वामी हरिदास ने बांके बिहारी का नाम दिया था। जानें मंदिर की विशेषताओं और मान्यताओं के बारे में। मथुरा। भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी का एकाकार रूप है बांके बिहारी।
वृंदावन की उत्पत्ति कैसे हुई?
इसे सुनेंरोकेंवृन्दावन भगवान श्रीकृष्ण की लीला से जुडा हुआ है। यह स्थान श्री कृष्ण की कुछ अलौकिक बाल लीलाओं का केन्द्र माना जाता है। यहाँ विशाल संख्या में श्री कृष्ण और राधा रानी के मन्दिर हैं ।
श्री कृष्ण को बिहारी क्यों कहा जाता है?
इसे सुनेंरोकेंश्री कृष्ण का शरीर तीन स्थानों (कमर, होंठ और पैर ) से टेढ़ा था इसी कारण श्री कृष्ण को बाँके बिहारी कहा जाता है। स्वामी हरिदास जी अनुरोध पर ही श्री कृष्णा ने विग्रह रूप में अवतार लिया था। स्वामी हरिदास ने ही सर्वप्रथम राधा कृष्ण के विग्रह रूप को बाँके बिहारी का नाम दिया था।
वृंदावन का नाम कैसे पड़ा?
इसे सुनेंरोकेंवृंदा तुलसी को कहा जाता है। यहां तुलसी के पौधे अधिक हैं, इसलिए इसे वृंदावन नाम दिया गया। यानी वृंदा (तुलसी) का वन।
कृष्ण भगवान को बिहारी क्यों कहते हैं?
इसे सुनेंरोकेंबांके बिहारी भगवान कृष्ण राधा का एकाकार विग्रह रूप है। इस स्वामी हरिदास जी के अनुरोध पर भगवान कृष्ण और राधा ने ये रूप लिया था। उनके इस रूप को स्वामी हरिदास जी ने ही बांके बिहारी नाम दिया। माना जाता है इस विग्रह रूप के जो भी दर्शन करता उसकी सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं।