भगवान शिव ने जहर को कैसे संभाला?
भगवान शिव ने जहर को कैसे संभाला?
- तांडव करके
- बिल्व के पत्ते खाकर
- पूरी रात जागकर
- शरीर के चारों ओर राख लगाकर
शिव ने विष कब पिया?
इसे सुनेंरोकेंमान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान निकला विष शिव ने इसी स्थान पर पिया था। विष पीने के बाद उनका गला नीला पड़ गया, इसलिए उन्हें नीलकंठ कहा गया। कहा जाता है कि भगवान शिव ने जब विष ग्रहण किया था तो उसी समय पार्वती ने उनका गला दबाया, ताकि विष उनके पेट तक न पहुंच सके।
शिव जी ने कौन सा जहर पिया था?
इसे सुनेंरोकेंनीलकंठ शिव : भगवान शिव के गल में विषधर सर्प विराजमान है। शिव ने कालकूट नामक विष पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। इसे हलाहल भी कहते हैं।
शिव ने विष क्यों पिया?
इसे सुनेंरोकेंउसे अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। शिव का विष पीना हमें यह संदेश देता है कि हमें बुराइयों को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए। बुराइयों का हर कदम पर सामना करना चाहिए। शिव द्वारा विष पीना यह भी सीख देता है कि यदि कोई बुराई पैदा हो रही हो तो हम उसे दूसरों तक नहीं पहुंचने दें।
शिव जी ने विष क्यों पिया था?
इसे सुनेंरोकेंभगवान शिव ने विष क्यों पिया? (Shiv Ne Vish Kyu Piya) जब महादेव ने देखा कि इस विष के द्वारा संपूर्ण सृष्टि का विनाश संभव है तथा इसे ग्रहण करने की क्षमता किसी और के अंदर नही हैं तब स्वयं उन्होंने उस विष को पीने का निश्चय किया।
महादेव जी ने जहर क्यों पिया था?
इसे सुनेंरोकेंऐसे में भगवान शंकर ने लोगों की रक्षा करने के लिए समुद्र से निकले विष को पी लिया। मां पार्वती यह देख समझ गईं कि भगवान शंकर के लिए विष घातक साबित हो सकता है इसलिए उन्होंने अपने हाथों से भगवान शंकर का गला पकड़ लिया और विष गले में ही रोक लिया। विष के कारण भगवान शिव का गला नीला हो गया और इसलिए उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा।
महादेव ने विश क्यों पिया था?
भगवान शिव का नीलकंठ नाम कैसे पड़ा?
इसे सुनेंरोकेंसार समुद्र मंथन से निकले कालकूट नामक विष को पीकर ही भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया, जिसके कारण उन्हें नीलकंठ कहा गया। इस विष को पीकर ही महादेव ने इस सृष्टि की रक्षा की थी।
हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन से निकले उस विश का नाम क्या था जिसे भगवान शिव ने अपने कंठ में रख लिया था?
इसे सुनेंरोकेंसमुद्र मंथन से निकला विष भक्तवत्सल भगवान शिव ने संसार की रक्षा के लिए उस कालकूट विष को अपने कंठ में धारण किया। विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया और इसी कारण भगवान शिव का एक नाम नीलकंठ पड़ा।