माँग की मूल्य सापेक्षता से क्या तात्पर्य है?

माँग की मूल्य सापेक्षता से क्या तात्पर्य है?

इसे सुनेंरोकेंआपसी सम्बन्धों को स्पष्ट करती है, अर्थात् मूल्य के बदलने से माँग में होने वाले परिवर्तनों की ओर संकेत करती है। प्रो० एस० के० रुद्रा के शब्दों में, “मूल्य में न्यूनतम परिवर्तन होने पर माँग में परिवर्तन हो जाने की क्षमता को माँग की मूल्य सापेक्षता कहते हैं।”

* मांग की कीमत लोच को मापने की कितनी विधियां हैं?

इसे सुनेंरोकेंप्रारम्भिक मूल्य में 100 प्रतिशत की वृद्धि मूल्य में पर्याप्त बड़ा परिवर्तन है। ऐसी स्थिति में माँग की लोच मापने के लिए मूल्य एवं माँग की पुरानी तथा नई संख्याओं के मध्य बिन्दुओं का प्रयोग किया जाना चाहिये। इस प्रकार की माप-विधि चाप लोच’ के नाम से प्रसिद्ध है। चाप दो बिन्दुओं के मध्य मॉग – वक्र के भाग स्पष्ट करता है।

सूचकांक संख्या क्या है?

इसे सुनेंरोकेंसूचकांक संबंधित चरों के समूह के परिमाण में परिवर्तनों को मापने का एक सांख्यिकीय साधन है। यह अपसारित (भिन्न-भिन्न दिशाओं में) होने वाले अनुपातों की सामान्य प्रवृत्ति का प्रतिनिधित्व करता है, जिनसे इसको परिकलित किया जाता है। यह दो भिन्न स्थितियों में संबंधित चरों के किसी समूह में औसत परिवर्तन का एक माप है।

सूचकांक कैसे बनाते हैं?

इसे सुनेंरोकेंसूचकांक, आधार पूंजी बाजार में आधार समय के दौरान सूचकांक के प्रत्येक शेयर के बाजार पूंजीकरण का कुल योग है। आधार समय के दौरान बाजार की पूंजी 1000 के सूचकांक मूल्य जो कि आधार सूचकांक मूल्य है के आधार पर जोड़ा जाता है। सूचकांक के मौजूदा बाजार की पूंजी,मौजूदा समय में सूचकांक के सभी शेयरों के पूंजी का जोड़ है।

मांग से क्या तात्पर्य है?

इसे सुनेंरोकेंअर्थशास्त्र में माँग (demand) किसी माल या सेवा की वह मात्रा होती है जिसे उस माल या सेवा के उपभोक्ता भिन्न कीमतों पर खरीदने को तैयार हों। आमतौर पर अगर कीमत अधिक हो तो वह माल/सेवा कम मात्रा में खरीदी जाती है और यदि कीमत कम हो तो अधिक मात्रा में।

मांग की लोच को मापने का सूत्र निम्नलिखित में से कौन सा है?

इसे सुनेंरोकेंकिसी वस्तु की कीमत में होने वाले परिवर्तन के परिणामस्वरूप माँग में होने वाले आनुपातिक परिवर्तन की जानकारी जिस धारणा से होती है उसे माँग की लोच (Elasticity of demand) कहा जाता है। अतः यह कहना उचित होगा कि माँग की लोच एक परिमाणात्मक कथन (क्वाण्टिटेटिव स्टेटमेण्ट) है।

सूचकांक का निर्धारण कैसे किया जाता है अवधारणा स्पष्ट कीजिए?

इसे सुनेंरोकें(iv) प्रतिशतों का माध्य- आधार वर्ष या आधार स्थान के मूल्य को 100 मानकर प्रचलित वर्ष के मूल्यों को प्रतिशतों में बदल दिया जाता है, जिन्हें ‘मूल्यानुपात’ कहते हैं। फिर सभी मूल्यानुपातों का माध्य निकाला जाता है। प्रतिशतों का यह माध्य ही सूचकांक कहलाता है।