17 कौशलात्मक ज्ञान से क्या आशय है इसकी विशेषताएँ लिखिए?
इसे सुनेंरोकेंकौशल के ज्ञान में हम किसी कार्य के बारे में क्या जानते हैं, इससे Page 9 ज्यादा यह जानना होता है कि उसे किया कैसे जाता है। किसी काम के बारे में यह जानना कि वह ‘क्या’ है और यह जानना कि वह ‘कैसे’ किया जाता है, ये दोनों चीजें कौशलात्मक ज्ञान में अलग-अलग होती हैं।
ज्ञान प्राप्ति के लिए क्या करने की तत्परता होनी चाहिए?
इसे सुनेंरोकेंतत्परता अर्थात् ज्ञान प्राप्त करने की पूर्ण सिद्धता। ज्ञान जहाँ से, जिस शर्त से मिले उसे लेने के लिए सदैव तैयार रहना। विद्यार्थी का पहला काम पढ़ना, अन्य सब काम बाद में, इस वृत्ति को तत्परता कहते हैं। गुरु का आदेश हो तो आधी रात को भी पढ़ने के लिए तैयार रहना ही तत्परता है
ज्ञान के निर्माण में परसन ज्ञान कैसे मदद करता है?
इसे सुनेंरोकेंसंज्ञान विचार, अनुभव और ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने और चीजों को समझने की मानसिक प्रक्रिया है। इसके माध्यम से हमारे मन में विचार पैदा होते हैं और किसी चीज के बारे में पूर्वानुमान भी लगा पाते हैं। ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से हम वाहय जगत को जानने समझने की जो कोशिश करते हैं उसे संज्ञान कहते हैं।
कौशल संबंधी ज्ञान से आप क्या समझते हैं इसकी विशेषताएं लिखिए?
इसे सुनेंरोकेंअपने जीवन को और सरल एवं सहज बनाना ही जीवन कौशल है। अनुकूली तथा सकारात्मक व्यवहार की वे योग्यताएँ हैं जो व्यक्तियों को दैनिक जीवन की माँगों और चुनौतियों से प्रभावी तरीके से निपटने के लिए सक्षम बनाती हैं। ये जीवन कौशल सीखे जा सकते हैं तथा उनमें सुधार भी किया जा सकता है। आलस मुक्त जीवन।
तथ्यात्मक ज्ञान से क्या आशय है इसकी विशेषताएँ लिखिए?
इसे सुनेंरोकेंतथ्यात्मक ज्ञान ज्ञान श्रृंखला का तृतीय प्रकार है इस ज्ञान के अंतर्गत किसी व्यक्ति या वस्तु के संदर्भ में कोई दवा या तथ्य निश्चित किया जाता है अर्थात किसी वाक्य के मूल्य में जो तथ्य छिपा होता है वह इस ज्ञान का प्रमुख अंग होता है इसलिए इस प्रकार के ज्ञान को तथ्यात्मक अधिगम कहते हैं।
ज्ञान से आप क्या समझते हैं?
इसे सुनेंरोकेंकिसी की निश्चित समय में किसी भी व्यक्ति या सम्पर्क में आने वाली कोई भी वस्तु जो कि जीवन को चलाने के लिए उपयोग में आती है उसके प्रति जागरूकता तथा साझेदारी ही ज्ञान कहलाती है।
आत्मज्ञान की प्राप्ति कैसे हो?
इसे सुनेंरोकेंइसलिए साधक को चाहिए कि वह भ्रमित न हो। यह ठीक समझ लेना चाहिए कि इस संसार में उसका हित करने वाला कोई नहीं है, मात्र एक ईश्वर के। इसलिए उसी की शरण में जाकर अपने मन को निर्मल करने में लग जाएं। आपको सतगुरु की प्राप्ति हो जाएगी और सतगुरु की कृपा से फिर ईश्वर की अनुभूति होगी
आत्मज्ञान कैसे होता है?
इसे सुनेंरोकेंआत्मज्ञान का अर्थ है स्वयं को जानना या देह से अलग स्वयं की स्थिति को पहचानना। 1. अग्नि:- बुद्धि सतोगुणी हो जाती है दृष्टा एवं साक्षी स्वभाव विकसित होने लगता है। 2.