हमें अंतरराष्ट्रीय शांति और सहयोग की आवश्यकता क्यों है?

हमें अंतरराष्ट्रीय शांति और सहयोग की आवश्यकता क्यों है?

इसे सुनेंरोकेंविश्व शांति सभी देशों और/या लोगों के बीच और उनके भीतर स्वतंत्रता, शांति और खुशी का एक आदर्श है। विश्व शांति पूरी पृथ्वी में अहिंसा स्थापित करने का एक माध्यम है, जिसके तहत देश या तो स्वेच्छा से या शासन की एक प्रणाली के जरिये इच्छा से सहयोग करते हैं, ताकि युद्ध को रोका जा सके

विश्व में शांति क्यों आवश्यक है?

इसे सुनेंरोकेंसभी देश एक दूसरे के साथ सौहार्दपूर्ण और समानता का व्यवहार करें। एक दूसरे की गरिमा, अखंडता और एकता के प्रति सम्मान का भाव रखें। वर्तमान में शांति बनाए रखने के लिए उक्त बातों पर ध्यान देना आवश्यक है। जब प्रत्येक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र के हितों का ध्यान रखें, तभी विश्व में शांति बनी रहेगी

सभी दुष्कर्म मन के कारण उपजते है यदि मन रूपांतरित हो जाये तो क्या दुष्कर्म बने रह सकते हैं यह किसने कहा?

इसे सुनेंरोकें➲ ( i) गौतम बुद्ध ✎… ‘सभी दुष्कर्म मन के कारण उपजते हैं, यदि मन रूपांतरित हो जाये तो क्या दुषकर्म बने रह सकते हैं’। ये कथन गौतम बुद्ध का है। गौतम बुद्ध के मतानुसार मानव के अंदर जो भी दुष्कर्म पनपते हैं, वह उसके मन के विकारों के कारण ही उत्पन्न होते हैं

वर्तमान में अहिंसा तथा शांति की क्या उपयोगिता तथा महत्व है स्पष्ट कीजिए?

इसे सुनेंरोकेंइसका व्यापक अर्थ है – किसी भी प्राणी को तन, मन, कर्म, वचन और वाणी से कोई नुकसान न पहुँचाना। मन मे किसी का अहित न सोचना, किसी को कटुवाणी आदि के द्वार भी नुकसान न देना तथा कर्म से भी किसी भी अवस्था में, किसी भी प्राणी कि हिंसा न करना, यह अहिंसा है| हिन्दू धर्म में अहिंसा का बहुत महत्त्व है।

विश्व में शांति कैसे लाई जा सकती है?

इसे सुनेंरोकेंविश्व शांति हासिल की जा सकती है, जब संसाधनों को लेकर संघर्ष नहीं हो। उदाहरण के लिए, तेल एक ऐसा ही संसाधन है और तेल की आपूर्ति को लेकर संघर्ष जाना पहचाना है। इसलिए, पुन: प्रयोज्य ईंधन स्रोत का उपयोग करने वाली प्रौद्योगिकी विकसित करना विश्व शांति हासिल करने का एक तरीका हो सकता है।

शांति के बजाय युद्ध का गुणगान करने वाला विचारक कौन था?

इसे सुनेंरोकें’युद्ध और शान्ति’ का लेखन तोलस्तोय ने 1863 ई॰ से 1869 ई॰ के बीच किया।

आत्म शांति के लिए क्या करें?

इसे सुनेंरोकें* पितृदोष से मुक्ति हेतु श्राद्धपक्ष अौर हर महीने की अमावस्या पर पितरों की आत्मिक शांति के लिए पिंडदान अौर तर्पण करें। * कर्मलोपे पितृणां च प्रेतत्वं तस्य जायते। तस्य प्रेतस्य शापाच्च पुत्राभारः प्रजायते। अर्थात: कर्मलोप की वजह से जो पूर्वज मृत्यु के बाद प्रेत योनि में चले जाते हैं

मनुष्य को शांति के लिए क्या करना चाहिए?

इसे सुनेंरोकेंशांति के लिए जरूरी है इच्छाओं पर नियंत्रण करना सीखें। इसके साथ ही ईश्वर ने जो भी दिया है, उसका धन्यवाद दें और उसमें संतुष्ट रहने का प्रयास करें। प्रतिदिन सुबह उठते ही सबसे पहले ईश्वर को याद करें या कुछ मिनट मेडिटेशन करें।