कृषि मूल्य से क्या तात्पर्य है?

कृषि मूल्य से क्या तात्पर्य है?

इसे सुनेंरोकेंकृषि मूल्य नीति, कृषि उत्पादन को बढाने के लिए, खाद्यानों की पूर्ति सुनिश्चित करने के लिए तथा औद्योगिक क्षेत्र की कच्चेमाल की आवश्यकता की नियमित पूर्ति के लिये आवश्यक है। क्योंकि कृषि उत्पादन की कीमत में तेज गिरावट आने से उसके उत्पादक किसान पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। उनकी आय में तेजी से कमी होती है।

लगत फसल क्या है?

इसे सुनेंरोकेंकिसी फसल का लागत नि‍कालने का फार्मूले ए-2: कि‍सान की ओर से किया गया सभी तरह का भुगतान चाहे वो कैश में हो या कि‍सी वस्‍तु की शक्‍ल में, बीज, खाद, कीटनाशक, मजदूरों की मजदूरी, ईंधन, सिंचाई का खर्च जोड़ा जाता है. ए2+एफएल: इसमें ए2 के अलावा परि‍वार के सदस्‍यों द्वारा खेती में की गई मेहतन का मेहनताना भी जोड़ा जाता है.

कृषि लागत एवं मूल्य आयोग का कार्य क्या है?

इसे सुनेंरोकेंCACP हर साल मूल्य नीति रिपोर्ट के रूप में सरकार को अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करती है, अलग-अलग जिंसों के पांच समूहों के लिए, जैसे कि खरीफ फसल, रबी फसल, गन्ना, कच्चा जूट और कोपरा।

कृषि मूल्य में उच्च वचन के क्या कारण है?

इसे सुनेंरोकेंएमएसपी को बाज़ार की गतिशीलता के साथ जोड़ने के बजाय, किसानों के हितों के अनुरूप बढ़ाने से कीमत निर्धारण प्रणाली विकृत हो गई है। इसलिये, जब सोयाबीन की एमएसपी बढ़ती है, तब बाज़ार की कीमतों में बढ़ोतरी होगी, भले ही फसल अच्छी हो, क्योंकि एमएसपी एक बेंचमार्क तय करती है।

स्वामीनाथन आयोग कब बना?

इसे सुनेंरोकेंदेश में हरित क्रांति (green revolution in India) के जनक प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन (M. S. Swaminathan) की अगुवाई वर्ष 2004 में एक आयोग बनाया गया था, जिसने किसानों की स्थिति में सुधार के लिए कई सिफारिशें की थीं.

कृषि लागत और मूल्य आयोग की स्थापना कब हुई?

1 जनवरी 1965कृषि लागत और मूल्य आयोग / स्थापना की तारीख और जगह

कृषि लागत एवं कीमत आयोग की स्थापना कब हुई?

इसे सुनेंरोकेंकृषि लागत एवं मूल्य आयोग की स्थापना साल 1965 में की गई थी. पहले इसका नाम कृषि कीमत आयोग था जिसे 1985 में बदला गया. यह कृषि मंत्रालय से जुड़ा है. इसका काम ही है कि फसलों की लागत के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की सिफारिश सरकार को करना.

कृषि मूल्य नीति के उद्देश्य क्या है?

इसे सुनेंरोकेंराष्ट्रीय कृषि मूल्य नीति का उद्देश्य घरेलू आवश्यकताओं की आपूर्ति हेतु खाद्यान्न उत्पादन में संतुलित वृद्धि को प्रोत्साहन देना। कृषि उत्पादों में मूल्य स्थिरता की प्राप्ति। उपभोक्ताओं विशेष तौर पर समाज के कमजोर वर्गों को वहनीय कीमत पर खाद्यान्न की उपलब्धता सुनिश्चित करना।