13 संसार की विषमताओं के बीच कवि कैसे जी रहे हैं?

13 संसार की विषमताओं के बीच कवि कैसे जी रहे हैं?

इसे सुनेंरोकेंसंसार की विषमताओं के बीच भी कवि कैसे जी रहा है? उत्तर: संसार की विषमताओं के बीच कवि मस्ती भरा जीवन जी रहा है और सुख-दुःख दोनों में प्रसन्न रह रहा है। प्रश्न 4. आशय स्पष्ट कीजिए: ”मैं भव मौजों पर मस्त बहा करता हूँ।”

कवि किसका भार लिए फिरता है?

इसे सुनेंरोकेंकवि जग-जीवन का भार लिए फिरता है। वह भार दुख और दर्द के कारण जीवन के लिए अति दुखदायी है। 3. कवि अपने जीवन में प्यार लेकर घूमता है।

नादान कौन है?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर – नादान यानी मूर्ख व्यक्ति सांसारिक मायाजाल में उलझ जाता है। मनुष्य इस मायाजाल को निरर्थक मानते हुए भी इसी के चक्कर में फैसा रहता है। संसार असत्य है। मनुष्य इसे सत्य मानने की नादानी कर बैठता है और मोक्ष के लक्ष्य को भूलकर संग्रहवृत्ति में पड़ जाता है।

मैं स्नेह सुरा का पान किया करता हूं पंक्ति में कौनसा अलंकार है?

इसे सुनेंरोकें’जग-जीवन’, ‘स्नेह-सुरा’ में अनुप्रास अलंकार है। खड़ी बोली का प्रयोग है। ‘किया करता हूँ’, ‘लिए फिरता हूँ’ की आवृत्ति में गीत की मस्ती है।

संसार के विषमताओं के बीच कब कैसे जी रहे हैं?

इसे सुनेंरोकेंकवि सुख और दुख दोनों स्थितियों को समान भाव ले रहा है, इसलिए वह सुख हो या दुख हो दोनों स्थितियों में प्रसन्न है। उसने संसार की विषमताओं के बीच तारतम्य बिठा लिया है। इसलिए वह सुख और दुख से निर्विकार हो गया है। इसी कारण संसार की विषमताओं के बीच मस्त होकर जी रहा है।

कवि अपने हृदय में क्या क्या लिए फिरता है?

इसे सुनेंरोकेंकवि क्या लिए फिरता है? कवि अपने हृदय के उद्गार (भाव) लिए फिरता है। वह अपने हृदय में दूसरो के लिए उपहार लिए फिरता है।

कवि संसार को क्या संदेश देता है?

इसे सुनेंरोकें(घ) कवि संसार को प्रेम की मस्ती का संदेश देता है। उसके इस संदेश पर संसार झूमता है, झुकता है तथा आनंद से लहराता है।

इस कविता में किसे नादान कहा गया है और क्यों?

इसे सुनेंरोकेंकवि कहता है कि संसार में दोनों तरह के लोग होते हैं – ज्ञानी और अज्ञानी, अर्थात् समझदार और नासमझ दोनों ही तरह के लोग इस संसार में रहते हैं। जो लोग प्रत्येक काम को समझबूझ कर करते हैं वे ‘दाना’ होते हैं, जबकि बिना सोचे-विचारे काम करने वाले लोग नादान होते हैं। अतः कवि ने दोनों में अंतर बताने के लिए ही ऐसा कहा है।