नटराज कौन है?

इसे सुनेंरोकेंनटराज शिवजी का एक नाम है उस रूप में जिस में वह सबसे उत्तम नर्तक हैं। नटराज शिव का स्वरूप न सिर्फ उनके संपूर्ण काल एवं स्थान को ही दर्शाता है; अपितु यह भी बिना किसी संशय स्थापित करता है कि ब्रह्माण्ड में स्थित सारा जीवन, उनकी गति कंपन तथा ब्रह्माण्ड से परे शून्य की नि:शब्दता सभी कुछ एक शिव में ही निहित है।

नटराज की मूर्ति क्या है?

इसे सुनेंरोकें’नटराज’ शिव के ‘तांडव नृत्य’ का प्रतीक है। चिदंबरम के गोपुर में तांडव के 108 रूप अंकित किए गये हैं। इस मूर्ति के एक एक अवयव, एक एक रेखा को वाचा प्राप्त है।

कौन से देश भरतनाट्य और नटराज के विषय में महत्त्वपूर्ण शोध कर रहे हैं?

इसे सुनेंरोकेंतमिल संस्कृति भरतनाट्यम् तमिल संस्कृति तमिल लोगों की संस्कृति है। तमिल संस्कृति भारत, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर और दुनिया भर में तमिलों के जीवन के कला और तरीके में निहित है।;स्थापत्य कला तामिल स्थापत्य कला में दो शैली हैं। यह तीन शैलियाँ तामिल नाड में स्पष्ट रूप से देखा जा सक्ते हैं।

नटराज की मूर्ति में कितने हाथ हैं?

इसे सुनेंरोकेंचारों वाणी (परा, पश्यंती, मध्यमा, वैखरी) तथा 84 लाख योनियों के सर्जक शिव हैं। शिव के दूसरे हाथ में स्थित अग्नि मलिनता दूर करती है। तीसरा हाथ ‘अभय मुद्रा’ दर्शाती है।

नृत्य मुद्रा में नटराज की मूर्ति किसकी है?

इसे सुनेंरोकेंNotes: नटराज की कांस्य मूर्ति चोल वंश से सम्बंधित है। नटराज का अर्थ है:- तांडव नृत्य की मुद्रा में शिव।

नटराज की मूर्ति कहाँ है?

इसे सुनेंरोकेंयह तमिलनाडु में चिदम्‍बरम में स्‍िथत है। नटराज मंदिर भगवान शिव के प्रमुख मंदिरों में से एक है। यहां बनी शिव के नटराज स्‍वरूप की प्रतिमा का अलौकिक सौंदर्य देखने को मिलता है। इस मंदिर को लेकर मान्‍यता है कि भगवान शिव ने अपने आनंद नृत्य की प्रस्तुति इस जगह पर की थी।

नटराज की मूर्ति रखने से क्या होता है?

इसे सुनेंरोकेंवास्तुव‌िज्ञान के अनुसार नटराज रूप वाली श‌िव प्रत‌िमा घर में नहीं होनी चाह‌िए। इसका कारण यह है क‌ि भगवान श‌िव जब तांडव नृत्य करते हैं तो व‌िनाश होता है। नटराज रूप में श‌िव तांडव करते इसल‌िए इन्हें घर में नहीं लाएं।

नटराज के रूप में नृत्य करने वाले शिव के कितने हाथ है?

इसे सुनेंरोकेंउनका दाहिना हाथ आचमन मुद्रा में है, जो यह दर्शाता है कि शिव विषपान करने वाले हैं। है। शिव का नटराज रूप में प्रस्तुतीकरण चोल काल तक पूर्ण रूप से विकसित हो चुका था।