वासना सताए तो क्या करें?

वासना सताए तो क्या करें?

10 विधि 10 का 13: मन लगाकर ध्यान का अभ्यास करें (Practice mindful meditation)

  1. किसी शांत और आरामदायक जगह पर बैठें या लेटें।
  2. कुछ गहरी, धीमी सांसें लें।
  3. अन्य शारीरिक संवेदनाओं पर ध्यान केंद्रित करें, उदाहरण के लिए, शरीर में तनाव की भावना या ऐसी चीजें जो आप वातावरण में अनुभव कर सकते हैं, (जैसे ध्वनि या गंध)।

वासना से मुक्त कैसे हो?

इसे सुनेंरोकेंआत्मतत्व का सतत् ध्यान करते रहने से वासनाओं का जाला हटाया जा सकता है। श्रुतियों का अध्ययन और मनन, ध्यान, ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति, निष्काम सेवा, समर्पित कर्म- ये सब मिलकर हमारे जीवन को धर्म और अध्यात्म की सुगंध से भर देते हैं। जब वासनाएं पूर्णत: क्षय हो जाती हैं तब आत्मतत्व स्वत: प्रकट हो जाता है।

काम विकार क्या है?

इसे सुनेंरोकेंशास्त्रों में इन 6 विकारों को षडरिपु कहा गया है. काम वासना से दूर रहें विद्वानों की मानें तो व्यक्ति को काम वासना से दूर रहना चाहिए. अधिक काम और वासना व्यक्ति की प्रतिभा को नष्ट करती है. ऐसे व्यक्ति अपने लक्ष्यों से भटक जाता है और सफलता उससे दूर हो जाती है.

काम का मूल क्या है?

इसे सुनेंरोकेंकाम, जीवन के चार पुरुषार्थों (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) में से एक है। प्रत्येक प्राणी के भीतर रागात्मक प्रवृत्ति की संज्ञा काम है। वैदिक दर्शन के अनुसार काम सृष्टि के पूर्व में जो एक अविभक्त तत्व था वह विश्वरचना के लिए दो विरोधी भावों में आ गया। इसी को भारतीय विश्वास में यों कहा जाता है कि आरंभ में प्रजापति अकेला था।

पुरुषार्थ से आप क्या समझते हैं?

इसे सुनेंरोकेंपुरुषार्थ से तात्पर्य मानव के लक्ष्य या उद्देश्य से है (‘पुरुषैर्थ्यते इति पुरुषार्थः’)। पुरुषार्थ = पुरुष+अर्थ =पुरुष का तात्पर्य विवेक संपन्न मनुष्य से है अर्थात विवेक शील मनुष्यों के लक्ष्यों की प्राप्ति ही पुरुषार्थ है। प्रायः मनुष्य के लिये वेदों में चार पुरुषार्थों का नाम लिया गया है – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष।

निर्धारित से आप क्या समझते हैं?

इसे सुनेंरोकेंमूल्य-निर्धारण यह निर्धारित करने की प्रक्रिया है कि कंपनी अपने उत्पादों के बदले क्या हासिल करेगी. मूल्य-निर्धारण के घटक हैं निर्माण लागत, बाज़ार, प्रतियोगिता, बाजार स्थिति और उत्पाद की गुणवत्ता. मूल्य-निर्धारण व्यष्टि-अर्थशास्त्र मूल्य आबंटन सिद्धांत में भी एक महत्वपूर्ण प्रभावित करने वाला कारक है।

पुरुषार्थ कैसे बनता है?

पुरुषार्थ किसे कहते हैं

  1. विद्वानों का मत है कि, तन, मन, ज्ञान (बुद्धि) एंव आत्मा के संयोजन से ‘पुरूष’, बनता है और पुरूष इन चारों की संतुष्टि या पूर्णता के लिए जो उद्यम या कार्य करता है, वही पुरूष का पुरूषार्थ कहलाता है।
  2. पुरूषार्थ शब्द का शाद्धिक अर्थ प्रयत्न करने, कार्य करने या उद्यम करने से है।

पुरुषार्थ क्या है समझाइए What is Purusharth explain?

इसे सुनेंरोकेंpurusharth meaning in hindi;पुरुषार्थ का शाब्दिक अर्थ है ” पुरूषरथर्यते पुरुषार्थ: ” अर्थात् पुरूष के लिये जो अर्थपूर्ण है, जो अभीष्ट है, उसे प्राप्त करने के लिये प्रयास करना पुरुषार्थ है। इस प्रकार पुरुषार्थ से आशय है पुरूष का अर्थ अर्थात् अभीष्ट और इस अभीष्ट की प्राप्ति हेतु उद्यम करना।

मूल निर्धारण का उद्देश्य क्या है?

इसे सुनेंरोकेंमूल्य निर्धारण के उद्देश्य मूल्यों में स्थिरता – ऐसे उद्योग जहाँ उतार-चढ़ाव अधिक मात्रा में आते हैं, वहाँ पर निर्माता मूल्यों में स्थिरता लाना चाहते हैं। ऐसी संस्थाएँ जो सामाजिक उत्तरदायित्व एवं सेवा की भावना को महत्व देती है, वे अधिकतम ऐसा करती है।

मनुष्य पुरुषार्थ से क्या क्या कर सकता है?

इसे सुनेंरोकेंपुरूषार्थ का अभीष्ट लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त करना है। हिन्दू धर्मशास्त्रों में मनुष्य के जीवन का अन्तिम एवं सर्वोच्च लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति को माना है और मनुष्य के समस्त प्रयत्न जीवन पर्यन्त मोक्ष प्राप्ति के लिए धर्मानुसार जीवन में कार्य करते रहना है।