शैव संतों के लेखन के संग्रह को पाँचवाँ वेद भी समझा जाता है उपरोक्त संग्रह का क्या नाम है?
इसे सुनेंरोकेंबाद में इसे तमिल शैव सिद्धांत के धर्मग्रंथ संग्रह का एक हिस्सा बनाया गया, जो एक अखिल भारतीय तांत्रिक परंपरा का एक विशिष्ट भक्ति-उन्मुख स्कूल था। बाद में, कवि सेकिलर ने पेरियाप्पुरम की रचना की, जो नयसर संतों की एक जीवनी है, जिसे “पांचवें वेद” के रूप में सम्मानित किया गया था, और अंततः तिरुमुरई में शामिल किया गया था।
सेव परंपरा क्या है?
इसे सुनेंरोकेंभगवान शिव तथा उनके अवतारों को मानने वालों और भगवान शिव की आराधना करने वाले लोगों को शैव कहते हैं। शैव में शाक्त, नाथ, दशनामी, नाग आदि उप संप्रदाय हैं । ये भी संप्रदाय हैं जो भगवान शिव की आराधना अलग अलग माध्यमों से करते हैं (i) शैव (ii) पाशुपत ।
शिव की पूजा करने वाले संतों को क्या कहते हैं?
इसे सुनेंरोकें(1) भगवान शिव की पूजा करने वालों को शैव और शिव से संबंधित धर्म को शैवधर्म कहा जाता है. (2) शिवलिंग उपासना का प्रारंभिक पुरातात्विक साक्ष्य हड़प्पा संस्कृति के अवशेषों से मिलता है. (3) ऋग्वेद में शिव के लिए रुद्र नामक देवता का उल्लेख है.
शैव आचार्य कौन था?
इसे सुनेंरोकेंइसके संस्थापक आचार्य लकुलीश थे। इनहोंने लकुल (लकुट) धारी शिव की उपासना का प्रचार किया, जिसमें शिव का रुद्र रूप अभी वर्तमान था। इसकी प्रतिक्रिया में अद्वैत दर्शन के आधार पर समयाचारी वैदिक शैव मत का संघटन सम्प्रदाय के रूप में हुआ।
सम्प्रदाय कितने है?
इसे सुनेंरोकेंवैष्णव, 2. शैव, 3. शाक्त, 4 स्मार्त और 5. वैदिक संप्रदाय।
कापालिक संप्रदाय क्या है?
इसे सुनेंरोकेंकापालिक एक तांत्रिक शैव सम्प्रदाय था जो अपुराणीय था। इन्होने भैरव तंत्र तथा कौल तंत्र की रचना की। कापालिक संप्रदाय पाशुपत या शैव संप्रदाय का वह अंग है जिसमें वामाचार अपने चरम रूप में पाया जाता है। कापालिक संप्रदाय के अंतर्गत नकुलीश या लकुशीश को पाशुपत मत का प्रवर्तक माना जाता है।
वीरशैव परंपरा के संस्थापक कौन थे?
इसे सुनेंरोकेंबसवण्णा को शैव संप्रदाय के उपसंप्रदाय वीरशैव या लिंगायत का जनक माना जाता है। बसवण्णा को बसवेश्वरा नाम से भी जाना जाता है। इनका जन्म 12 शताब्दी में कर्नाटक राज्य में रहनेवाले एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
वीरशैव परंपरा कहाँ प्रारम्भ हुई?
इसे सुनेंरोकेंक्या है लिंगायत/वीरशैव परंपरा बारहवीं शताब्दी में कर्नाटक में एक नवीन आंदोलन का उदय हुआ, जिसका नेतृत्त्व बासवन्ना (1106-68 ) नामक एक ब्राह्मण ने किया। बासवन्ना कलाचूरी राजा के दरबार में मंत्री थे। इनके अनुयायी वीरशैव व लिंगायत कहलाये।
पाशुपत संप्रदाय क्या है?
इसे सुनेंरोकेंपाशुपत सम्प्रदाय शैव धर्म की एक शाखा है। यह सम्प्रदाय शिव को सर्वोच्च शक्ति मानकर उपासना करने वाला सबसे पहला हिन्दू सम्प्रदाय है। बाद में इसने असंख्य उपसम्प्रदायों को जन्म दिया, जो गुजरात और महाराष्ट्र में कम से कम 12वीं शताब्दी तक फला-फूला तथा जावा और कंबोडिया भी पहुंचा।
कश्मीरी शैव धर्म के बारे में आप क्या जानते हैं?
इसे सुनेंरोकेंकश्मीरी शैव सम्प्रदाय का गठन ‘वसुगुप्त’ ने 9वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में किया था। इनके ‘कल्लट’ और ‘सोमानन्द’ नाम के दो प्रसिद्ध शिष्य थे। इनका दार्शनिक मत ‘ईश्वराद्वयवाद’ था। सोमानन्द ने ‘प्रत्यभिज्ञा मत’ का प्रतिपादन किया था।
शैव धर्म की उत्पत्ति कब हुई?
इसे सुनेंरोकेंपुराणों में लिंगपूजा का भी उल्लेख मिलता है। इन सभी विवरणों से स्पष्ट हो जाता है कि पाँचवीं शती का समाज में शैव धर्म ने व्यापक लोकाधार प्राप्त कर लिया था तथा शिव विभिन्न नामों और रूपों में पूजे जाते थे। सम्भवतः लिंग रूप में शिव पूजा का प्रसार गुप्तकाल में ही हुआ था। गुप्त काल के पश्चात् भी शैवधर्म की उन्नति होती रही।
शैव सम्प्रदाय के लोग किसकी पूजा करते हैं?
इसे सुनेंरोकें(1) भगवान शिव की पूजा करने वालों को शैव और शिव से संबंधित धर्म को शैवधर्म कहा जाता है।