सागर की अपेक्षा पंक जि को श्रेष्ठ क्यों बत य गय है इसके म ध्यम से कठि ने क्य सीि दी है?

सागर की अपेक्षा पंक जि को श्रेष्ठ क्यों बत य गय है इसके म ध्यम से कठि ने क्य सीि दी है?

इसे सुनेंरोकेंसागर की अपेक्षा पंक-जल को श्रेष्ठ इसलिए बताया गया है क्योंकि कीचड़ का पानी छोटे जीव-जन्तुओं का प्यास बुझाने की सामर्थ्य रखना है किन्तु सागर का जल खारा होने के कारण व्यर्थ है क्योंकि उसका किसी कार्य में उपयोग नहीं हो सकता।

पंक जल अच्छा क्यों है?

इसे सुनेंरोकेंQuestion 3: रहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जल को धन्य क्यों कहा है? उत्तर: कीचड़ में जल की अल्प मात्रा होती है फिर भी इस जल से कई जीवों की प्यास बुझती है। लेकिन सागर का जल विशाल मात्रा में होने के बावजूद किसी की प्यास नहीं बुझा पाता। इसलिए रहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जल को धन्य कहा है।

कौन जल धन्य है *?

इसे सुनेंरोकेंकौन-सा जल धन्य है? A. रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।।

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ज्यों जैसे
कोय कोई
धनि धन्य
आखर अक्षर
जिय जीव

धागा टूट जाने पर यदि पुनः उसे जोड़ा जाए तो उसमें क्या परिवर्तन आएगा?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर : (क) जिस प्रकार टूटे हुए धागे को जोड़ने पर उसमें गांठ पड़ जाती है, उसी प्रकार प्रेम के टूटे हुए दिल को जोड़ने पर वह पहले के समान नहीं रह पाता।

कीचड़ के जल की क्या विशेषता है?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर:- पहाड़ लुप्त कर देने वाले कीचड़ की विशेषता है कि बहुत अधिक कीचड़ का होना। यह कीचड़ जमीन के नीचे बहुत गहराई तक होता है। ऐसा कीचड़ गंगा नदी के किनारे खंभात की खाड़ी सिंधु के किनारे पर होता है।

कवि के अनुसार जीवन में किसका महत्व है *?

इसे सुनेंरोकेंरहीम के अनुसार जीवन की सार्थकता परोपकार में है। उनका कहना है कि वे लोग धन्य हैं जिनका शरीर सदा सबका उपकार करता है। जिस प्रकार मेंहदी बाँटने वाले के अंग पर भी मेंहदी का रंग लग जाता है उसी प्रकार परोपकार करने वाले का शरीर भी सुशोभित रहता है।

पहले पद में कवि द्वारा कौन सा भाव अभिव्यक्त किया गया?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर:- इस पंक्ति का भाव यह है कि फल-फूल पाने के लिए जड़ को ही सींचना चाहिए अर्थात् कवि यहाँ पर एक ही ईश्वर भक्ति की ओर ध्यान देने के लिए कहते हैं। 4. दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।

धागा टूटने पर कफर क्यों नहीं लमल पाता?

प्रेम रूपी धागा जुड़ जाने पर क्या होता हैं?

इसे सुनेंरोकेंप्रेम का धागा संबंधों को जोड़ता है इस तथ्य को स्पष्ट करते हुए रहीम जी कहते हैं कि प्रेम रूपी धागे को झटके से नहीं तोड़ना चाहिए। अगर इसमें एक बार गाँठ पड़ जाती है तो यह फिर नहीं जुड़ता और अगर जुड़ता भी है तो इसमें गाँठ पड़ जाती है अर्थात् प्रेम सम्बन्ध कठिनाई से बनते हैं।