मुहता नैन्सी रि ख्यात लेखक कौन है?
इसे सुनेंरोकेंमुंहता नैणसीरी ख्यात / मुंहता नैणसी विरचित ; सम्पादक, बदरीप्रसाद साकरिया
नैणसी री ख्यात के बारे में आप क्या जानते हैं?
इसे सुनेंरोकेंयह जोधपुर के महाराजा जसवन्त सिंह ( प्रथम ) के समकालीन थे। इनके पिता जयमल भी राज्य में उच्च पदों पर कार्य कर चुके थे। नैणसी ने जोधपुर राज्य के दीवान पद पर कार्य किया और अनेक युद्धों में भी भाग लिया, उन्हें इतिहास में बड़ी रूचि थी। इनके द्वारा लिखी गई ख्यात ‘नैणसी की ख्यात’ के नाम से प्रसिद्ध है।
नैंसी कौन था?
इसे सुनेंरोकेंमुहणौत नैणसी,राजस्थान के क्रमबद्ध इतिहास लेखन के प्रथम इतिहासकारथे । वे महाराजा जसवन्त सिंह के राज्यकाल में मारवाड़ के दीवान थे। वे भारत के उन क्षेत्रों का अध्यन करने के लिये प्रसिद्ध हैं जो वर्तमान में राजस्थान कहलाता है।
ख्यात साहित्य क्या है?
इसे सुनेंरोकें’ख्यात’ शब्द ‘ख्याति’ से अपभ्रंश होकर बना है जिसका आशय प्रसिद्धि होना अथवा प्रकाशित होना है। ख्यात ग्रंथों को राजस्थानी गद्य का उत्तम स्वरूप माना गया है जिनमें गद्य साहित्य की प्रायः समस्त विधाओं के दर्शन होते हैं। इस प्रकार बात, विगत, वंशावली, हकीकत आदि इतिहास विषयक रचनाओं का विकसित रूवरूप ख्यात साहित्य है।
राजस्थान के इतिहास के स्रोत के रूप में ख्यात साहित्य का क्या महत्व?
इसे सुनेंरोकेंइस ख्यात में राजपूतों की 36 शाखाओं का वर्णन किया गया हैं। राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान (जोधपुर) ने ख्यात की सभी प्रतियों को संग्रहित करके 4 जिल्दों में ख्यात और दो जिल्दों में ‘गांवा री ख्यात’ को प्रकाशित करवाया। मुंडीयार की ख्यात मारवाड़ के शासकों के बारे में जानकारी प्रदान करती है।
राजस्थान के क्या साहित्य की विवेचना कीजिए?
इसे सुनेंरोकेंराजस्थान में साहित्य रचना के प्रमाण 13वीं शताब्दी से मिलते है राजस्थान साहित्य का प्रारम्भिक काल 11वीं शताब्दी से प्रारंभ होकर 1460 ई. तक माना जाता है। इस प्रारंभिक काल में जैन विद्वानों, आचार्यों और भिक्षुओं का प्रभुत्व था इस काल के महत्वपूर्ण रचना कार्य : भरतेश्वर बाहुबली घोर – ब्रजसेन सूरी
बीकानेर के इतिहास लेखन में कौन सी ख्यात अति लाभदायक है?
इसे सुनेंरोकेंदयालदास को राजस्थान का अंतिम ख्यातकार माना जाता है। उनका जन्म 1798 ई. में बीकानेर रियासत के कुबिया गांव में हुआ था। उन्होंने बीकानेर राज्य की ख्याति लिखी, जिसे ‘बीकानेर राय राठौड़ री ख्यात’ और ‘दयालदास री ख्यात’ के नाम से भी जाना जाता है।
राजस्थान में मराठों ने सर्वप्रथम कब व कहां प्रवेश किया?
इसे सुनेंरोकेंराजस्थान में सर्वप्रथम 1711 ई. में मराठों ने मेवाड़ में प्रवेश किया ।
राजस्थान में लोकायुक्त का कार्यकाल कितना होता है?
इसे सुनेंरोकेंराजस्थान में लोकायुक्त का कार्यकाल 5 वर्ष की आयु या 65 वर्ष, जो भी पहले हो, है। राजस्थान विधानसभा ने लोकायुक्त के कार्यकाल को आठ साल से घटाकर पांच साल करने के लिए राजस्थान लोकायुक्त और उप-लोकयुक्त (संशोधन) विधेयक पारित किया।
राजस्थानी भाषा का विकास कितने चरणों में हुआ?
इसे सुनेंरोकेंराजस्थानी एवं गुजराती का मिला-जूला रूप 16 वीं सदी के अंत तक चलता रहा। 16 वीं सदी के बाद राजस्थानी का विकास एवं स्वंतत्र भाषा कके रूप में होने लगा। 17 वीं सदी के अंत तक आते आते राजस्थानी पूर्णतः एक स्वतंत्र भाषा का रूप ले चूकी थी। वर्तमान में राजस्थानी भाषा बोलने वालों की संख्या 6 करोड़ से भी अधिक है।
राजस्थान में मराठों के प्रवेश के क्या कारण?
इसे सुनेंरोकेंमालवा में चौथ व सरदेशमुखी वसूल करने का अधिकार मिल गया तो उन्हें लूटने के लिए अब जस्थान ही शेष रह गया था। अतः राजस्थान के धन को लूटने की लालसा से भी मराठे राजस्थान में अपना प्रवेश चाहते थे। मगल दरबार की दलबन्दी-मुगल दरबार की दलबन्दी ने भी मराठों को राजस्थान की ओर आने के लिए प्रोत्साहित किया । 1713 ई.
हुरडा सम्मेलन में क्या अहदनामा तैयार किया गया?
इसे सुनेंरोकेंहुरडा सम्मेलन की अध्यक्षता मेवाड महाराणा जगतसिंह द्वितीय ने की। सम्मेलन में एक अहदनामा तैयार किया गया, जिसके अनुसार सभी शासक एकता बनाये रखेंगे। एक का अपमान सभी का अपमान समझा जायेगा, कोई राज्य, दूसरे राज्य के विद्रोही को अपने राज्य में शरण नही देगा।