गीता सहित पूरे महाभारत का मुख्य उद्देश्य क्या है?

गीता सहित पूरे महाभारत का मुख्य उद्देश्य क्या है?

इसे सुनेंरोकेंगीता ही नहीं,सम्पूर्ण महाभारत का काम लोक हृदय के मोहावरण को दूर करना है। यही काम गीता ने किया जिसके परिणामस्वरूप अर्जुन का मोह नष्ट हो गया और उसे क्षात्रधर्म का ज्ञान हो गया।

भागवत गीता का सार क्या है?

इसे सुनेंरोकेंगीता सार में श्री कृष्ण ने कहा है कि हर इंसान के द्धारा जन्म-मरण के चक्र को जान लेना बेहद आवश्यक है, क्योंकि मनुष्य के जीवन का मात्र एक ही सत्य है और वो है मृत्यु। क्योंकि जिस इंसान ने इस दुनिया में जन्म लिया है। उसे एक दिन इस संसार को छोड़ कर जाना ही है और यही इस दुनिया का अटल सत्य है।

महाभारत की मुख्य कथा क्या थी?

इसे सुनेंरोकेंधृतराष्ट्र ने गांधारी द्वारा सौ पुत्रों को जन्म दिया, जिनमें दुर्योधन सबसे बड़ा था और पाण्डु के युधिष्टर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव आदि पांच पुत्र हुए। धृतराष्ट्र जन्म से ही नेत्रहीन थे, अतः उनकी जगह पर पाण्डु को राजा बनाया गया। एक बार वन में आखेट खेलते हुए पाण्डु के बाण से एक मैथुनरत मृगरुपधारी ऋषि की मृत्यु हो गयी।

गीता में कितने योग है?

इसे सुनेंरोकेंगीता में वर्णित हैं 18 योग, इनके जर‍िए ही श्रीकृष्ण ने अर्जुन को द‍िया था ज्ञान

भगवत गीता से हमें क्या सीख मिलती है?

इसे सुनेंरोकेंगीता में कहा गया है कि हर व्यक्ति को स्वयं का आंकलन करना चाहिए. हमें खुद हमसे अच्छी तरह और कोई नहीं जानता. इसलिए अपनी कमियों और अच्छाईयों का आंकलन कर खुद में एक अच्छे व्यक्तित्व का निर्माण करना चाहिए. गीता के अनुसार – ‘क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है.

सबसे बड़ा योग कौन सा है?

इसे सुनेंरोकेंभगवान श्रीकृष्ण गीता में अर्जुन से कहते हैं कि जीवन में सबसे बड़ा योग कर्म योग है। इस बंधन से कोई मुक्त नहीं हो सकता है अपितु भगवान भी कर्म बंधन के पाश में बंधे हैं। इसका अर्थ है-कालांतर में जब अर्जुन के मन में भी भय और निराशा पैदा हो गया था। उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें गीता उपदेश देकर उनका मार्ग प्रशस्त किया।

गीता का कर्मयोग क्या है?

इसे सुनेंरोकेंगीता के अनुसार जो कर्म निष्काम भाव से ईश्वर के लिए जाते हैं वे बंधन नहीं उत्पन्न करते। वे मोक्षरूप परमपद की प्राप्ति में सहायक होते हैं। इस प्रकार कर्मफल तथा आसक्ति से रहित होकर ईश्वर के लिए कर्म करना वास्तविक रूप से कर्मयोग है और इसका अनुसरण करने से मनुष्य को अभ्युदय तथा नि:श्रेयस की प्राप्ति होती है।