रामचंद्र शुक्ल के यहां कौन सी प्रेस की पुस्तकें आया करती थी?

रामचंद्र शुक्ल के यहां कौन सी प्रेस की पुस्तकें आया करती थी?

इसे सुनेंरोकेंइसके अलावा उन्होंने जायसी ग्रंथावली एवं भ्रमरगीत सार का संपादन किया तथा उनकी लंबी भूमिका लिखी। बाल-बुद्धि कोई भेद नहीं कर पाती थी। में सुनाई पड़ने लगा कि भारतेंदु हरिश्चंद्र के एक मित्र यहाँ रहते हैं, जो हिंदी के एक प्रसिद्ध कवि हैं और जिनका नाम है उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी।

लेखक रामचंद्र शुक्ल के मोहल्ले में कौन कौन रहता था?

इसे सुनेंरोकेंलेखक के पिता की बदली, मिर्जापुर के बाहर नगर में हुई थी। वहाँ रहते हुए उन्हें एक दिन ज्ञात हुआ कि भारतेन्दु हरिश्चंद्र के सखा जिनका नाम उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी है और जो ‘प्रेमघन’ उपनाम से लिखते हैं, वे यहाँ रहते हैं।

लेखक के घर कौन सी प्रेस की पुस्तकें आया करती थी?

इसे सुनेंरोकेंउनके घर में भारतेन्दु हरिश्चंद्र जी के नाटकों, रामचरितमानस तथा रामचंद्रिका का वाचन हआ करता था। पिता ने उनका परिचय साहित्य से बचपन में ही करा दिया था। लेखक जिस पुस्तकालय में हिंदी की पुस्तकें पढने जाया करते थे उसी के संस्थापक केदारनाथ जी थे। वो प्रायः लेखक को किताबे लेकर जाते हुए देखते थे।

त्योहारों के अवसर पर चौधरी साहब के यहां क्या होता था?

इसे सुनेंरोकेंवह बसंत पंचमी, होली, दिवाली आदि त्योहारों पर खूब नाच रंग और उत्सव आदि किया करते थे। उनके रहन-सहन ठाट बाट वाले थे और उनकी हर एक अदा से उनके रियासतदारी और तबीयतदारी झलकती। थी। वे हर त्यौहार उत्सव आदि पर दिल खोलकर खर्च किया करते थे, इसी कारण वह बिल्कुल खानदानी रईस ही थे।

समवयस्क हिंदी प्रेमियों की मण्डली में कौन से लेखक मुख्य थे?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर – समवयस्क हिंदी प्रेमीयों की मंडली में मुख्य लेखक थे -काशी प्रसाद जायसवाल , भगवानदास हालना , पंडित बदरीनाथ गौड़, पंडित उमाशकर द्वेदी इत्यादि । ‘भारतेंदु जी के मकान के नीचे का यह हृदय परिचय बहुत शीघ्र गहरी मैत्री में परिणत हो गया।

चौधरी प्रेमघन साहब कहाँ रहते थे?

इसे सुनेंरोकेंजीवनी आपका जन्म भाद्र कृष्ण षष्ठी, संवत् 1912 तदनुसार 1 सितम्बर 1855 ई० को दत्तापुर, आजमगढ़ में हुआ था। पिता पं॰ गुरुचरणलाल उपाध्याय कर्मनिष्ठ तथा विद्यानुरागी ब्राह्मण थे। आप सरयूपारीण ब्राह्मण कुलोद्भूत भारद्वाज गोत्रीय खोरिया उपाध्याय थे।