पेठा फल कौन सा है?
इसे सुनेंरोकेंपेठा फल कद्दू वर्गीय प्रजाति का होता है, इसलिए इसे पेठा कद्दू भी कहते हैं. यह हल्के हरे रंग का होता है और लंबे व गोल आकार में पाया जाता है. इस फल के ऊपर हल्के सफेद रंग की पाउडर जैसी परत चढ़ी होती है. पेठा(कुम्हड़ा) – पेठा, कद्दू से थोड़ा छोटा सफेद रंग का फल होता है.
Petha को इंग्लिश में क्या कहते हैं?
इसे सुनेंरोकेंपेठा, कुम्हड़ा या कुष्माण्ड (अंग्रेज़ी:winter melon ; वानस्पतिक नाम : बेनिनकेसा हिस्पिडा (Benincasa hispida)), एक बेल पर लगने वाला फल है, जो सब्जी की तरह खाया जाता है।
पेठा कहाँ का मशहूर व्यंजन है?
इसे सुनेंरोकेंपेठा उत्तर भारत की एक पारदर्शी नरम मिठाई है। आमतौर पर आयताकार या बेलनाकार आकृति का यह व्यंजन, एक विशेष सब्जी, सफ़ेद लौकी (या सफेद कद्दू, या बस पेठा) से बनाया जाता है। आगरा नगर से संबंधित होने के कारण इसे अक्सर आगरा का पेठा भी कहा जाता है।
पेठा फल कैसे होता है?
इसे सुनेंरोकेंपेठा कद्दू वर्गीय प्रजाति के फल से बनाया जाता है, इसलिए इस फल का नाम पेठा कद्दू (खबहा) कहलाता है। इस का इस्तेमाल ज्यादातर पेठा बनाने में किया जाता है। इस फल के ऊपर हलके सफेद रंग की पाउडर जैसी परत चढ़ी होती है। इस की कुछ प्रजातियां 1-2 मीटर लंबे फल भी देती हैं।
सफेद पेठा का जूस पीने से क्या फायदा?
आइए, जानते हैं कि इसके सेवन से हमें क्या-क्या फायदे मिल सकते हैं.
- कब्ज से राहत सफेद पेठे में एंटी-ऑक्सीडेंट, गेस्ट्रों प्रोटेक्टिव जैसे गुण होते हैं जो गैस और कब्ज जैसी समस्याओं को दूर करने में सहायक हैं.
- तनाव को करे कम
- मेटाबॉलिज्म को बढ़ाए
- पथरी से राहत
- पीलिया में फायदेमंद
आगरा की कौनसी चीज मशहूर है?
इसे सुनेंरोकेंआगरा का पेठा दुनियाभर में मशहूर है। यहां का कई फ्लेवर का पेठा मिलता है। पेठा गुलाब लड्डू, कंचा पेठा, केसर अंगूरी पेठा, केसर पेठा, ड्राय चेरी पेठा, लाल पेठा, कोकोनट पेठा, पान पेठा, रसभरी पेठा, सैंडविच पेठा, चॉकलेट पेठा, पनीर पेठा और चेरी मैंगो पेठा। यहां से कई देशों में पेठा एक्सपोर्ट भी किया जाता है।
पेठे की खेती कब होती है?
इसे सुनेंरोकेंपेठे की खेती गर्मी एवं वर्षा ऋतु दोनों में की जाती है। गर्मी की फसल के लिए बीजों की बुवाई फरवरी माह के अंत से मध्य मार्च तक करनी चाहिए। वर्षा ऋतु की फसल के लिए बीज की बुवाई जून के आखिरी सप्ताह से जुलाई के मध्य तक की जाती है। पहाड़ी क्षेत्रों में मार्च महीने के बाद इसकी बुवाई की जाती है।