भाषा में विभिन्न संरचनाओं की आवश्यकता क्यों होती है?
इसे सुनेंरोकेंउसका सम्बन्ध भाषा की संरचना से न होकर सामाजिक स्वीकृति से होता है। मानक भाषा को इस रूप में भी समझा जा सकता है कि समाज में एक वर्ग मानक होता है जो अपेक्षाकृत अधिक महत्त्वपूर्ण होता है तथा समाज में उसी का बोलना-लिखना, उसी का खाना-पीना, उसी के रीति-रिवाज़ अनुकरणीय माने जाते हैं।
हिंदी भाषा के विविध रूप कौन से है?
इसे सुनेंरोकेंहिंदी भाषा की 18 बोलियाँ हैं- अवधी, भोजपुरी, खड़ी बोली, ब्रज भाषा, मैथिली, हरियाणवी, मेवाती, गढ़वाली आदि। बोली भाषा की छोटी इकाई है जिसका संबंध ग्राम या मण्डल से रहता है। इसमें देशज शब्दों तथा घरेलू शब्दावली का बाहुल्य होता है। यह मुख्य रूप से बोलचाल की ही भाषा होती है।
भाषा के कितने विविध रूप है?
इसे सुनेंरोकेंइधर संसार भर की भाषाओं में यह प्रयोजनीयता धीरे-धीरे विकसित हुई है और रोजी-रोटी का माध्यम बनने की विशिष्टताओं के साथ भाषा का नया आयाम सामने आया है : वर्गाभाषा, तकनीकी भाषा, साहित्यिक भाषा, राजभाषा, राष्ट्रभाषा, सम्पर्क भाषा, बोलचाल की भाषा, मानक भाषा आदि।
भाषा की प्रमुख प्रकृतियां क्या है उल्लेख करें?
भाषा की प्रकृति (विशेषताएँ) – यहाँ पर 18 प्रकृतियों का वर्णन किया…
- भाषा सामाजिक संपत्ति है
- भाषा पैतृक संपत्ति नहीं है
- भाषा व्यक्तिगत संपत्ति नहीं है
- भाषा अर्जित संपत्ति है
- भाषा व्यवहार-अनुकरण द्वारा अर्जित की जाती है
- भाषा सामाजिक स्तर पर आधारित होती है
- भाषा सर्वव्यापक है
- भाषा सतत प्रवाहमयी है
हिंदी भाषा में कितने प्रकार के शब्दों का प्रचलन है?
इसे सुनेंरोकेंस्रोत के आधार पर शब्द के पाँच भेद हैं, तत्सम शब्द, तद्भव शब्द, देशज शब्द, विदेशी शब्द और संकर शब्द। प्रयोग के आधार पर शब्द के दो भेद होते हैं, सामान्य शब्द और पारिभाषिक या तकनीकी शब्द।
कामकाजी हिन्दी से क्या तात्पर्य है कामकाजी हिन्दी के विभिन्न रूपो का परिचय दीजिए?
इसे सुनेंरोकेंकामकाजी हिंदी का एक मानक भाषा का रूप होती है और उसी मानक रूप के अनुसार उस हिंदी का प्रयोग शासकीय-प्रशासकीय कार्यालयों तथा विभिन्न तरह के संस्थानों में आपसी पत्र व्यवहार अथवा संप्रेषण के लिए किया जाता है। कामकाजी हिंदी को प्रयोजनमूलक हिंदी भी कहा जाता है।