रीतिकाल के दो कवि कौन से हैं?

रीतिकाल के दो कवि कौन से हैं?

इसे सुनेंरोकेंइस समय अनेक कवि हुए— केशव, चिंतामणि, देव, बिहारी, मतिराम, भूषण, घनानंद, पद्माकर आदि। इनमें से केशव, बिहारी और भूषण को इस युग का प्रतिनिधि कवि माना जा सकता है। बिहारी ने दोहों की संभावनाओं को पूर्ण रूप से विकसित कर दिया। आपको रीति-काल का प्रतिनिधि कवि माना जा सकता है।

दूसरा सप्तक के कवि कौन है?

इसे सुनेंरोकेंदूसरा सप्तक सात कवियों का संकलन है जिसका संपादन अज्ञेय द्वारा 1949 में तथा प्रकाशन 1951 में भारतीय ज्ञानपीठ से हुआ। दूसरा सप्तक में भवानी प्रसाद मिश्र, शकुन्तला माथुर, हरिनारायण व्यास, शमशेर बहादुर सिंह, नरेश मेहता, रघुवीर सहाय एवं धर्मवीर भारती की रचनाएँ संकलित हैं।

रीतिकाल के आचार्य कवि का क्या नाम है?

रीतिकाल के कवि और उनकी रचनाएँ

क्रम रचनाकार उत्तर-मध्यकालीन/रीतिकालीन रचना
1. चिंतामणि कविकुल कल्पतरु, रस विलास, काव्य विवेक, शृंगार मंजरी, छंद विचार
2. मतिराम रसराज, ललित ललाम, अलंकार पंचाशिका, वृत्तकौमुदी
3. राजा जसवंत सिंह भाषा भूषण
4. भिखारी दास काव्य निर्णय, श्रृंगार निर्णय

रीतिकाल के अन्य 2 नाम क्या क्या है?

विश्वनाथ प्रसाद मिश्र का विभाजन

  • रीतिबद्ध:
  • रीतिसिद्ध:
  • रीतिमुक्त:

क्या तुलसीदास रीतिकालीन कवि है?

इसे सुनेंरोकेंकहा जाता है कि बरवै रामायण की रचना तुलसी ने अब्दुर्रहीम खानखाना के काव्य बरवै नायिकाभेद से प्रेरित होकर की. रहीम उनके मित्र भी थे और संभवतः उन्होंने अपना वह काव्य उन्हें भेजा भी था. इस कृति में सीता का रूप-वर्णन बहुत कुछ वैसे ही किया गया है, जैसे वे रीतिकालीन नायिका हों.

चौथा सप्तक का प्रकाशन वर्ष कब है?

इसे सुनेंरोकेंइसमें हिंदी के कुल सात कवियों की कविताएँ संकलित हैं। चौथा सप्तक 1979 ईस्वी में प्रकाशित हुआ । इन सात कवियों में अवधेश कुमार (1945) , राजकुमार कुंभज (1947), स्वदेश भारती (1939), नंदकिशोर आचार्य (1945), सुमन राजे (1938-2008), श्रीराम वर्मा (1935) तथा राजेंद्र किशोर आदि सम्मिलित हैं।

तीसरा सप्तक का प्रकाशन कब हुआ?

इसे सुनेंरोकेंतीसरा सप्तक अज्ञेय द्वारा संपादित नई कविता के सात कवियों की कविताओं का संग्रह है। इसमें कुँवर नारायण, कीर्ति चौधरी, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, मदन वात्स्यायन, प्रयाग नारायण त्रिपाठी, केदारनाथ सिंह और विजयदेवनरायण साही की रचनाएँ संकलित हैं। इसका प्रकाशन भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन से 1959 ई० में हुआ।

रीतिकाल के अंतिम आचार्य कौन थे?

इसे सुनेंरोकेंसबको मन हर्षित करे, ज्यों विवाह में गारि।।” आचार्य शुक्ल ने रीतिकाल का प्रर्वतक आचार्य चिन्तामणी को माना है। इस काल की मुख्य विशेषता श्रृंगारिकता एवं रीति निरूपण है। रीतिकाल का अंतिम कवि ‘ग्वाल’ को माना जाता है।