वायु प्रवाह कैसे होता है?

वायु प्रवाह कैसे होता है?

इसे सुनेंरोकेंपृथ्वी के ऊपर की वायु सूर्य के विकिरणों से गर्म होकर हल्की हो जाती है और ऊपर उठ जाती है। इस प्रकार वायु का दाब कम हो जाता है। अत: समुद्र के ऊपर की वायु कम दाब वाले क्षेत्र की तरफ बहने लगती है। यह बहती हुई वायु पवन कहलाती है।

वायु प्रवाह के उत्पन्न होने के क्या कारण है?

इसे सुनेंरोकेंपृथ्वी के वायुमंडल के असमान विधियों से गर्म होने के कारण कहीं पर उच्च दाब का क्षेत्र और कहीं पर निम्न दाब का क्षेत्र विकसित हो जाता है। दाब के इस अंतर के कारण वायु प्रवाह होता है, इसे पवन या समीर कहते हैं।

एयर फ्लो क्या है?

इसे सुनेंरोकेंइसे स्तरीय प्रवाह भी कहते हैं और तरल के ये ‘स्तर’ आपस में बहुत कम या नहीं के बराबर मिश्रित होते हैं। अल्प वेग पर तरल की गति पटलीय होती है जबकि अधिक वेग पर अपटलीय या प्रक्षुब्ध प्रवाह (turbulant flow)। पटलीय गति में प्रवाह की दिशा के लम्बवत कोई गति नहीं होती, न ही इस गति में भंवर धाराएँ होतीं हैं।

उदान वायु क्या है?

इसे सुनेंरोकेंजिस वायु का मुख में संचरण होता है उसे प्राणवायु कहते हैं । इससे शरीर की रक्षा, प्राणधारण और खाया हुआ अन्न जठर में जाता हैं । इसके दूषित होने से हिचकी, दमा, आदि, रोग हेते हैं । जो वायु ऊपर की ओर चलती है उसे उदान वायु कहेत हैं ।

अपान वायु का स्थान क्या है?

इसे सुनेंरोकेंअपान वायु का स्थान पक्वाशय है । इसके द्वारा मल, मुत्र, शुक, आर्तव, गर्भ समय पर खिंचकर बाहर होता है । इस वायु के कुपित होने से वस्ति और गुप्त स्थानों के रोग हेतो हैं ।

प्राण वायु क्या है?

इसे सुनेंरोकेंअनिरुद्ध जोशी ‘शतायु’ ‘प्राण’ का अर्थ योग अनुसार उस वायु से है जो हमारे शरीर को जीवित रखती है। शरीरांतर्गत इस वायु को ही कुछ लोग प्राण कहने से जीवात्मा मानते हैं। इस वायु का मुख्‍य स्थान हृदय में है। इस वायु के आवागमन को अच्छे से समझकर जो इसे साध लेता है वह लंबे काल तक जीवित रहने का रहस्य जान लेता है।

* 5 प्राण कितने प्रकार हैं सभी के कार्य का क्रमशः विस्तृत वर्णन करें?*?

इसे सुनेंरोकेंये पंचक निम्न हैं- (1) व्यान, (2) समान, (3) अपान, (4) उदान और (5) प्राण। वायु के इस पांच तरह से रूप बदलने के कारण ही व्यक्ति की चेतना में जागरण रहता है, स्मृतियां सुरक्षित रहती है, पाचन क्रिया सही चलती रहती है और हृदय में रक्त प्रवाह होता रहता है। इनके कारण ही मन के विचार बदलते रहते या स्थिर रहते हैं।