प्रसार शिक्षा को ग्रामीण समाज को उपयोगी ज्ञान देने की विधि कौन मानता है?
इसे सुनेंरोकेंसहयोग का सिद्धांत प्रसार शिक्षा कार्यक्रम सहयोग के सिद्धांत पर आधारित है। यह कार्यक्रम मुख्यतः ग्रामीणों के उथान के लिए बनाए जाते हैं। अतः कार्यक्रम की सफलता के लिए ग्रामीणों का सहयोग मिलना आवश्यक है। प्रसार कार्यकर्ता एवं ग्रामीणों को मिल-जुलकर एक दूसरे के सहयोग से कार्य करना होता है।
प्रसार शिक्षा का कौन सा सिद्धांत है?
इसे सुनेंरोकेंप्रोत्साहन देना प्रसार शिक्षा का मुख्य सिद्धांत प्रसार कार्यकर्ता वैज्ञानिकों व ग्रामीण लोगों के बीच का अंतर कम करता है। इसलिए स्वैच्छिक भागीदारी तथा नई तकनीकों को अपनाने और बदलाव हेतु विचार को प्रोत्साहन देना प्रसार शिक्षा का मुख्य सिद्धांत है।
प्रसार शिक्षा का प्रसार सर्वप्रथम कहाँ हुआ?
इसे सुनेंरोकेंयह एक्ट संयुक्त राज्य अमेरिका के लोगों में कृषि एवं गृह अर्थशास्त्र (गृह विज्ञान) से सम्बंधित सभी विषयों पर उपयोगी व व्यवहारिक जानकारी का प्रसार करने के लिए पारित किया गया । प्रसार शिक्षा की इस मत्वपूर्ण भूमिका को बींसवीं सदी की शुरुवात में श्री रवीन्द्र नाथ टैगोर, महात्मा गांधी तथा एफ.
प्रसार शिक्षा का ग्रामीण विकास में क्या महत्व है?
इसे सुनेंरोकेंप्रसार शिक्षा का आविर्भाव ग्रामोत्थान तथा ग्रामीणों को बेहतर जीवन-स्तर प्रदान करने हेतु हुआ है। होने के अनुसार, ग्रामीण जनसंख्या का जीवन-स्तर ऊँचा उठाना तथा भूमि, जल एवं पशुधन का समुचित उपयोग ही प्रसार कार्यक्रम का मूल लक्ष्य है।
प्रसार शिक्षा के लिए निम्नलिखित में से कौन दृश्य साधन है?
इसे सुनेंरोकेंशिक्षा में प्रयोग होने वाली पठान प्रक्रिया और श्रव्य दृश्य सामग्री का उपयोग प्रसार शिक्षा हेतु भी किया जाता है। इसलिए प्रसार शिक्षा में आम जनता को शिक्षित करने के लिए शिक्षा के बुनियादी और नये ज्ञान का प्रयोग किया जाता है।
प्रसार शिक्षा का कौन सा साधन उचित है और क्यों?
इसे सुनेंरोकेंप्रसार शिक्षा एक निरंतर चलने वाली शिक्षा है जिसका कोई अंत नहीं है। प्रसार शिक्षा द्वारा ग्रामीणों, अनपढ़ों एवं बेरोजगारों को शिक्षित किया जाता है जिसके माध्यम से वे अपने ही ‘ स्थानीय परिस्थितियों में रह कर ज्ञानार्जन कर, अपने स्वयं के प्रयासों से रोजगार प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन-स्तर को ऊँचा उठा सकते हैं ।
भारत में विस्तार शिक्षा के जनक कौन हैं?
इसे सुनेंरोकेंशिक्षा के जनक थे स्वामी सहजानन्द