कर्म और भाग्य में कौन श्रेष्ठ है?
इसे सुनेंरोकेंइंसान के कर्म से उसका भाग्य तय होता है। इंसान को कर्म करते रहना चाहिए, क्योंकि कर्म से भाग्य बदला जा सकता है
इंसान का भाग्य कैसे बदलता है?
इसे सुनेंरोकेंव्यक्ति का कोई विशेष नाम केवल संयोग नहीं है यह उसके कर्म और संस्कारों का खेल है. जिस नाम से आप दुनिया में जाने जाते हैं वह नाम किस्मत तय करतीं है. कोई और नहीं. जीवन में सारा आकर्षण, रिश्ते और उतार चढ़ाव नाम पर निर्भर करते हैं
भाग्य क्या है?
इसे सुनेंरोकेंभाग्य ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰] वह अवश्यंभावी दैवी विधान जिसके अनुसार प्रत्येक पदार्थ और विशेषतः मनुष्य के सब कार्य— उन्नति, अवनति नाश आदि पहले ही से निश्चित रहते हैं और जिससे अन्यथा और कुछ हो ही नहीं सकता । पदार्थों और मनुष्यों आदि के संबंध में पहले ही से निश्चित और अनिवार्य व्यवस्था या क्रम । तकदीर । किस्मत ।
क्या भाग्य को बदला जा सकता है?
इसे सुनेंरोकेंकर्म का परिणाम भाग्य यानि किस्मत के उपर निर्भर करता है। लेकिन ज्योतिष में ऐसे उपाय बताए गए हैं जिनसे किस्मत को बदला जा सकता है। लेकिन व्यक्ति को भाग्य के भरोसे ही नहीं बैठे रहना चाहिए अन्यथा बिना सही कर्म किए भाग्य भरोसे बैठकर जीवन कष्टमय हो जाता है
प्रारब्ध क्या है भगवत गीता?
इसे सुनेंरोकेंप्रारब्ध : यही कारण है कि व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार जीवन मिलता है और वह अपने कर्मों का फल भोगता रहता है। यही कर्मफल का सिद्धांत है। ‘प्रारब्ध’ का अर्थ ही है कि पूर्व जन्म अथवा पूर्वकाल में किए हुए अच्छे और बुरे कर्म जिसका वर्तमान में फल भोगा जा रहा हो।
मनुष्य का भाग्य कैसे बनता है?
इसे सुनेंरोकेंअपने कर्म से जीव जन्म लेता है और अपने कर्म से मर जाता है। उसके जीवन में सुख-दुख-भय-क्षोभ जो भी होता है, उसके कर्मों का फल है। उसे पाकर ही वह कहता है कि हमारे भाग्य (प्रारब्ध) ये ही था भाग्य बनना अपने हाथों में है क्योंकि अपने कर्मों से भाग्य बनता है।
इंसान का भाग्य कौन लिखता है?
इसे सुनेंरोकेंक्या आपका भाग्य भगवान ने लिखा है, अगर आप ऐसा मानते हैं तो ये गलत हो सकता है. क्योंकि वो सिर्फ आप ही हैं जो अपना भाग्य रच सकते हैं. आज के समय में सिर्फ सफलता सिर्फ मेहनत से नहीं मिलती बल्कि खुद में बदलाव करने से मिलती है. अगर आपको अपनी विफलता को दूर करना है तो कुछ चतुराई दिखानी होगी
मनुष्य का भाग्य कौन लिखता है?
इसे सुनेंरोकेंअनुकूल परिस्थितयां सौभाग्य है और प्रतिकूल परिस्थितियां दुर्भाग्य है | यही सुख और दुःख के रूप में फल देने वाले कर्म ही हमारे विधाता हैं. तो लिखने वाला ईश्वर, अल्लाह, इलाही, गॉड या कोई गुप्त शक्ति नहीं हमारा अपना आत्मा है जो अपने सभी पूर्व कर्मों का हिसाब किताब बिना किसी त्रुटि के रखता है.
क्यों बैठे भाग्य भरोसे?
इसे सुनेंरोकेंबिना विश्वास और आश्वासन के साहस नहीं आता। आधी लड़ाई तो इसी भरोसे से जीती जा सकती है कि हमने जो ठाना है, उसे कर सकते हैं। क्रोधित होना कोई बुरी बात नहीं, क्रोध में बुराई तब पैदा होती है जब आदमी विवेक खो देता है। जो भाग्य के सहारे बैठ जाते हैं, उनका भाग्य भी उन्हीं के पास बैठ जाता है।
मनुष्य का कर्म क्या है?
इसे सुनेंरोकेंकर्म हिंदू धर्म की वह अवधारणा है, जो एक प्रणाली के माध्यम से कार्य-कारण के सिद्धांत की व्याख्या करती है, जहां पिछले हितकर कार्यों का हितकर प्रभाव और हानिकर कार्यों का हानिकर प्रभाव प्राप्त होता है, जो पुनर्जन्म का एक चक्र बनाते हुए आत्मा के जीवन में पुनः अवतरण या पुनर्जन्म की क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं की एक प्रणाली की …
गीता के अनुसार भाग्य क्या है?
इसे सुनेंरोकेंतब भगवान श्रीकृष्ण ने उसे गीता के कर्म ज्ञान का उपदेश दिया। भगवान कृष्ण ने अर्जुन को कहा कि राज्य तुम्हारे भाग्य में है या नहीं यह तो बाद में, पहले तुम्हें युद्ध तो लड़ना पड़ेगा। भाग्य का समर्थन करने वाले कहते है कि हमें जो सुख, संपत्ति, वैभव प्राप्त होता है वह भाग्य से होता है।
कर्मों का फल कैसे मिलता है भगवत गीता?
इसे सुनेंरोकेंसवाल: गीता में कहा है: कर्मों और कर्म फलों को मुझे अर्पण कर दो! यदि कर्म करने की आजादी न हो तो जीवन में जीवन जैसा कुछ भी नहीं रहेगा। इसी आजादी के कारण व्यक्ति पाप, पुण्य या मुक्ति में गति कर सकता है। कर्मों की इस आजादी के कारण सबको अपना-अपना फल मिलता रहता है और व्यक्ति उसको भोगता रहता है