दुख का मूल क्या है?
इसे सुनेंरोकेंदुखों का मूल कारण है अज्ञान, जिसके बिना मानव संतोष की प्राप्ति नहीं कर पाता है। यह कहना था पीयूष जी महाराज का, जोकि आप शभु शिव मंदिर बनी गुड़ा कल्याल में एक दिवसीय सत्संग सम्मेलन के दौरान कथा की अमृत वर्षा कर रहे थे। पीयूष जी ने कहा कि सत्य को छोड़ अन्य जितनी भी हमारी इच्छाएं हैं वह हमें दुख ही देती हैं।
दुख आने पर हमें क्या करना चाहिए?
इसे सुनेंरोकेंकई बार हमें अपने मन की बात दूसरे को सिर्फ बताने भर से आराम मिलता है। कभी-कभी दूसरों की सलाह भी राहत लेकर आती है। लेकिन ऐसी किसी स्थिति में बात करना सबसे जरूरी होता है और यही नियम उन लोगों पर भी लागू होता है, जो मदद मांगने आपके पास आते हैं। उस सूरत में आपको एक सच्चे साथी की तरह सहायता करनी चाहिए।
दुख का मूल्य कारण क्या है?
इसे सुनेंरोकेंसंसारमें मनुष्य के दुखी रहने का सबसे बड़ा कारण उसका आसक्त होना है। वह किसी के भी प्रति आसक्ति रखता है तो चाहे भाई-बहिन, माता-पिता, भाई बंधु, प|ी-पुत्र-पौत्र या किसी वस्तु के प्रति तो उसे उसके बिछुड़ने या समाप्त होने या खो जाने पर दुख का सामना करना पड़ता है।
पक्षी क्यों व्यथित है?
इसे सुनेंरोकेंक्योंकि वे बंधन में हैं। क्योंकि वे आसमान की ऊँचाइयाँ छूने में असमर्थ हैं। क्योंकि वे अनार के दानों रूपी तारों को चुगने में असमर्थ हैं।
दुख का सबसे बड़ा कारण क्या है?
इसे सुनेंरोकेंदुख के कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण है चाह, इच्छा या कामना। चाहे का न होना और अनचाहे का हो जाना दुख का मूल कारण है। हम जन्म से ही कुछ न कुछ चाहते हैं और चाह की पूर्ति न होने पर हम दुखी होते हैं।
हर तरह की सुख सुविधाएं पाकर भी पक्षी पिंजरे में बंद क्यों नहीं रहना चाहते short answer?
इसे सुनेंरोकेंहर तरह की सुख सुविधाएँ पाकर भी पक्षी पिंजरे में बंद क्यों नही रहना चाहते? उत्तर : हर तरह की सुख सुविधाएँ पाकर भी पक्षी पिंजरे में बंद इसलिए रहना नहीं चाहते क्योंकि उन्हें स्वतंत्रता पसंद है, वे बंधन में रहना नही चाहते। वे खुले आकाश में आजादी पूर्वक उड़ना चाहते हैं।
पक्षी क्यों व्यथित हैं MCQ?
इसे सुनेंरोकेंपक्षी क्यों व्यथित हैं? पुलकित पंख टूट जाएँगे। कनक-कटोरी की मैदा से। Answer: इस काव्यांश में पक्षी अपनी यह इच्छा प्रकट करते हैं कि हमें खुले आकाश में उड़ान भरने की स्वतंत्रता दी जाए।
पूजा पाठ करने वाले दुखी क्यों रहते हैं?
इसे सुनेंरोकेंज्यादा परेशानियों का मूल कारण सही समाय, सही तरीक़े और मेहनत से कार्यों को ना करना है। फिर यही कार्य इकठ्ठा होकर एक ऐसा बोझ हो जाते हैं कि समझ नहीं आता कहा से शुरुआत करें। कुछ समझ नहीं आता तो पूजा पाठ में लग जाते हैं।
भक्त कैसे बने?
इसे सुनेंरोकेंभगवान को चंदन, पुष्प अर्पण करना मात्र इतने में कोई भक्ति पूर्ण नहीं होती, यह तो भक्ति की एक प्रक्रिया मात्र है। भक्ति तो तब ही होती है जब सब में भक्तिभाव जागता है। ईश्वर सब में है। मैं जो कुछ भी करता हूं उस सबको ईश्वर देखते हैं, जो ऐसा अनुभव करता है उसको कभी पाप नहीं लगता।