जीवन का उद्देश्य क्या होना चाहिए?
इसे सुनेंरोकेंश्री मद्भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि मानव जीवन का एकमात्र उद्देश्य आत्म-साक्षात्कार करना है। मनुष्य की आत्मा परम सत्य को जानने के बाद जीवन मुक्ति की अधिकारी हो जाती है और मनुष्य इस संसार समुद्र से पूर्णतया मुक्त होकर पुनः संसार चक्र में नहीं फँसता।
इंसान के जीवन का लक्ष्य क्या है?
इसे सुनेंरोकेंजीवन का लक्ष्य ‘जीवन’ है यानी आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करना है, अपने आपको जानना है। इसे जानने के लिए और जीवन की अभिव्यक्ति करने के लिए ही आप शरीर के साथ जुड़े हैं। जब आप जीवन का सही अर्थ जानेंगे तब आपको जीवन होने की कला (आर्ट ऑफ़ बीइंग लाइफ़) समझ में आएगी। इंसान सोचता है कि उसे जीवन जीने की कला सिखाई जाए।
गीता के अनुसार जीवन का उद्देश्य क्या है?
इसे सुनेंरोकेंExplanation: जीवन का उद्देश्य स्वयं को भौतिकवादी बंधनों से मुक्त करना है। हमारे पिछले जन्म के कर्मों को चुकाने और अधूरे कर्तव्यों को पूरा करने के लिए, क्योंकि यदि हम फिर से पैदा हुए हैं तो इसका मतलब है कि हमारे पिछले जन्मों के कुछ लंबित कर्मों को पूरा करना होगा।
मानव जीवन का अंतिम उद्देश्य क्या है?
इसे सुनेंरोकेंमनुष्य जीवन का अंतिम लक्ष्य अपनी आत्मा का कल्याण करना है। 84 लाख योनियों के भ्रमण से सिर्फ मानुष जन्म में ही मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। इंसान अपने पूरे जन्म को विषय भोगो में बर्बाद कर देता है। कम से कम अंतिम समय मे तो अपना कल्याण करना ही चाहिए।
इंसान को जीवन में क्या करना चाहिए?
इसे सुनेंरोकेंअपने जीवन में हमेशा उसी चीज को हासिल करने का लक्ष्य रखें, जिसे करने में आपकी रुचि भी हो। कई बार लोग सिर्फ लाभ कमाने के लिए ऐसा व्यवसाय चुन लेते हैं जिसमें उनकी जरा सी भी रुचि नहीं होती है। कारणवश, उन्हें बाद में नुकसान उठाना पड़ जाता है। इसलिए सफलता का सबसे पहला नियम यही है कि अपने पसंद के काम का चुनाव करें।
मनुष्य को जीवन में क्या करना चाहिए?
इसे सुनेंरोकेंउन्होंने कहा कि संसार में आकर मानव को अच्छे कर्म करने चाहिए। कोई आदमी का बुरा भी करे तो उसका सम्मान करना उस आदमी का कर्तव्य होना चाहिए। तभी उस परम प्रभु परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है। उन्होंने कहा कि रामायण आदमी को जीना सिखाती है तो भागवत मरना सिखाती है।
कौटिल्य के अनुसार मानव जीवन का लक्ष्य क्या है?
इसे सुनेंरोकेंशास्त्रों ने अर्थ को मानव की सुख-सुविधाओं का मूल माना है। धर्म का भी मूल, अर्थ है (चाणक्यसूत्र १/२) । सुख प्राप्त करने के लिए सभी अर्थ की कामना करते हैं। इसलिए आचार्य कौटिल्य त्रिवर्ग में अर्थ को प्रधान मानते हुए इसे धर्म और काम का मूल कहा है।