19वीं सदी में भारत में गरीब जनता पर मुद्रण संस्कृति का क्या प्रभाव पड़ा?

19वीं सदी में भारत में गरीब जनता पर मुद्रण संस्कृति का क्या प्रभाव पड़ा?

इसे सुनेंरोकेंउन्नीसवीं सदी में भारत में गरीब जनता पर मुद्रण संस्कृति का निम्न असर हुआ : मुद्रण संस्कृति से देश की गरीब जनता अथवा मजदूर वर्ग को भी बहुत लाभ पहुंचा । पुस्तकें इतनी सस्ती हो गई थी कि चौक चौराहे पर बिकने लगी थी । कुछ सुधारवादी लेखकों की पुस्तकों ने मजदूरों को जातीय भेदभाव के विरुद्ध संगठित किया।

मुद्रण कला का भारतीय महिलाओं के जीवन पर क्या असर पड़ा?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर – (क) 19वीं सदी भारत में मुद्रण संस्कृति के प्रसार का महिलाओं पर व्यापक प्रभाव पड़ा। महिलाओं के जीवन में परिवर्तन आया । महिलाओं की जिंदगी और उनकी भावनाओं पर गंभीरता से पुस्तकें लिखी गई। इस परिवर्तन के बाद महिलाएँ फुर्सत के समय मनपसंद किताबें पढ़ने लगी थीं।

मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में क्या मदद की?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर : मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अंग्रेजी काल में भारतीय लेखकों ने अनेक ऐसी पुस्तकों की रचना की जो राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत थी। इन लेखों ने भारतीयों के मन में राष्ट्रीयता की ज्योति जलाई।

छपाई का धर्म पर क्या प्रभाव पड़ा?

इसे सुनेंरोकें(ख) धर्म-सुधारक मार्टिन लूथर मुद्रण के पक्ष में था क्योंकि मुद्रण से धर्म-सुधार आंदोलन के नए विचारों के प्रसार में मदद मिली। मुद्रण ने लोगों में नया बौद्धिक माहौल बनाया। न्यू टेस्टामेंट के लूथर के तर्जुमे या अनुवाद की 5,000 प्रतियाँ कुछ ही हफ़्तों में बिक गईं, और तीन महीने में ही दूसरा संस्करण निकालना पड़ा।

मुद्रण क्रांति क्या है इसका फ्रांस की क्रांति पर क्या प्रभाव पड़ा?

इसे सुनेंरोकेंक्रांति के फलस्वरूप राजा को गद्दी से हटा दिया गया, एक गणतंत्र की स्थापना हुई, खूनी संघर्षों का दौर चला, और अन्ततः नेपोलियन की तानाशाही स्थापित हुई जिससे इस क्रांति के अनेकों मूल्यों का पश्चिमी यूरोप में तथा उसके बाहर प्रसार हुआ। इस क्रान्ति ने आधुनिक इतिहास की दिशा बदल दी।

मुद्रण संस्कृति का फ्रांसीसी क्रांति पर क्या प्रभाव पड़ा?

इसे सुनेंरोकें1789 में कर्इ इतिहासकारों का मानना है कि मुद्रण संस्कृति ने फ्रांसीसी क्रांति के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ रची। सारे पुराने मूल्य, संस्थाओं और कायदों पर आम जनता के बीच बहस-मुबाहिसे हुए और इस तरह बनी’ सार्वजनिक दुनिया’ से सामाजिक क्रांति के नए विचारों का सूत्रापात हुआ।

इसे सुनेंरोकेंAnswer:मुद्रण संस्कृति से देश की गरीब जनता अथवा मजदूर वर्ग को भी बहुत लाभ पहुंचा । पुस्तकें इतनी सस्ती हो गई थी कि चौक चौराहे पर बिकने लगी थी । गरीब मजदूर इन्हें आसानी से खरीद सकते थे । बीसवीं शताब्दी में सार्वजनिक पुस्तकालय भी खुलने लगे जिससे पुस्तकों की पहुंच और भी व्यापक हो गई।

मार्टिन लूथर कौन था मुद्रण के बारे में उसके क्या विचार थे?

इसे सुनेंरोकें(i) मार्टिन लूथर जर्मनी का एक महान धर्म सुधारक था। उसने रोमन कैथलिक चर्च की कुरीतियों का विरोध किया तथा रिफमेशन आंदोलन की शुरुआत की। (ii) मुद्रण के माध्यम से उसके द्वारा कैथोलिक चर्च की आलोचना कर लिखी गयी 95 स्थापनाएँ अधिक-से- अधिक लोगों तक पहुँची। (iii) उसने प्रोटेस्टेट मत की शुरुआत की।

मुद्रण क्रांति क्या है?

इसे सुनेंरोकेंमुद्रण तकनीक ने पाठकों के एक नये वर्ग को जन्म दिया। मुद्रण की मदद से किसी किताब की आसानी से अनेक कॉपी बनाई जा सकती थी, इसलिए किताबें सस्ती होने लगीं। इसके परिणामस्वरूप किताबें अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचने लगीं। जनसाधारण तक किताबें पहुँचने से पढ़ने की एक नई संस्कृति का विकास हुआ।