वैसे डॉक्टर साहब ने पूरा आश्वासन दिया था लेकिन चश्मा तो अब तक नहीं उतरा लेखिका इसका क्या कारण मानती है?

वैसे डॉक्टर साहब ने पूरा आश्वासन दिया था लेकिन चश्मा तो अब तक नहीं उतरा लेखिका इसका क्या कारण मानती है?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर: चश्मा लगाते समय डॉक्टर ने आश्वासन दिया था कि कुछ दिन पहनने पर ऐनक उतर जाएगी परंतु ऐसा नहीं हुआ। लेखिका इसके लिए खुद को जिम्मेदार मानती है। दिन की रोशनी छोड़कर रात में टेबल लैंप के सामने काम करने के कारण उसका चश्मा कभी नहीं उतरा, बस नंबर कम होता रहा।

बचपन पाठ में लेखिका लंबी सैर पर निकलते समय अपने पास क्या रखती थीं और क्यों?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर – लम्बी सैर पर निकलते समय लेखिका अपने पास रुई रखती थी। वह रुई मौजे के अंदर पहनते समय रखतीं थीं, ऐसा करने से पैरों में छाले नहीं होते थे।

चचेरे भाई के चले जाने के बाद लेखिका ने क्या किया?

इसे सुनेंरोकेंचश्मा लगाने पर उनके चचेरे भाई उन्हें क्या कहकर चिढ़ाते थे? उत्तर 2-3: दिन की रोशनी को छोड़कर रात में टेबल लैंप के सामने काम करने के कारण लेखिका को चश्मा लगाना पड़ा। जब पहली बार लेखिका ने चश्मा लगाया तो उसके चचेरे भाई ने उसे छेड़ते हुए कहा कि, देखो! कैसी लग रही है!

चश्मा लगाने पर लेखिका को उनके चचेरे भाई क्या कहकर चिढ़ाते थे?

इसे सुनेंरोकेंचश्मा लगाने पर उनके चचेरे भाई उन्हें क्या कहकर चिढ़ाते थे? लेखिका को रात में टेबल लैंप के सामने बैठकर पढ़ने के कारण उनकी नजर कमजोर हो गई थी, इस वजह से उन्हें चश्मा लगाना पड़ा। उनके चचेरे भाई चश्मा लगाने पर उन्हें छेड़ते हुए कहते थेआँख पर चश्मा लगाया ताकि सूझे दूर की यह नहीं लड़की को मालूम सूरत बनी लंगूर की!

लेखिका का चेहरा कब उदास हो जाता था?

इसे सुनेंरोकेंलेखिका बचपन में रात में टेबल लैंप की रोशनी में काम करती थी जिसके कारण उनकी आंखों की रोशनी कम होने लगी और उन्हें चश्मा लगाना पड़ा । चश्मा लगाने पर उनके चचेरे भाई उन्हें लंगूर कहकर चिढ़ाते थे । लेखिका को यह सब बहुत बुरा लगता था। वास्तव में लेखिका ने जब चश्मा लगाया तो उस समय चश्मा लगाना बुरा समझा जाता था।

िेखिका चॉकलेट और टॉफी कब और कैसे िाती थी?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर:- लेखिका को अपने बचपन में कन्फेक्शनरी (हलवाई की दुकान) काउंटर (गणक) से हफ्त़े में एक बार चॉकलेट खरीदने की छूट थी। उसके पास सबसे ज्यादा चॉकलेट -टॉफी का स्टॉक (भंडार) रहता था। वह चॉकलेट लेकर खड़े-खड़े कभी नहीं खाती थी।