कबीर रहीम के दोहे अर्थ सहित?

कबीर रहीम के दोहे अर्थ सहित?

Rahim Das Ke Dohe With Meaning in Hindi

  • –1– बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय. रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय.
  • –2– रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय. टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय.
  • –3– रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि.
  • –4– जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग.
  • –5– रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार.

कबीर दास जी व रहीम दास जी के कोई चार नीतिगत दोहो के फ्लैश कार्ड बनाइए?

इसे सुनेंरोकेंकबीर के नीति दोहे साई इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय । मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भूखा जाय ॥ जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान । मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥

रहीम के अनुसार सच्चे मित्र की क्या विशेषता है?

इसे सुनेंरोकेंरहीम कहते हैं कि सच्चा मित्र दुख आने पर तुरंत सहायता के लिये पहुॅच जाते हैं। मित्रता की पहचान दुख में हीं होता है। समय परे ते होत हैं वाही पट की चोट । हीं मिलन के समय झपट कर बुझा देती है।

कबीर जी रहीम जी के दोहे?

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गांठ परि जाय।।

  • रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
  • रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार।
  • जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घट जाहिं।
  • दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं।
  • रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुख प्रगट करेइ,
  • वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
  • कबीर के दोहे रहीम के दोहे?

    rahim ke dohe: रहीम के दोहे अर्थसहित

    • Rahim ke Dohe In Hindi : रहीम के दोहे अर्थसहित
    • मान बड़ाई देखि कर, भक्ति करै संसार।
    • मान बड़ाई ऊरमी, ये जग का व्यवहार।
    • चौसठ दीवा जाये के, चौदह चन्दा माहिं।
    • तेहि घर किसका चांदना, जिहि घर सतगुरु नाहिं।
    • कबीर गुरु की भक्ति बिन, राज ससभ होय।
    • माखी गुड़ में गड़ि रही, पंख रही लपटाय।

    संत कबीर की कविता?

    कुछ रचनाएँ

    • साधो, देखो जग बौराना / कबीर
    • सहज मिले अविनासी / कबीर
    • काहे री नलिनी तू कुमिलानी / कबीर
    • मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै / कबीर
    • रहना नहिं देस बिराना है / कबीर
    • कबीर की साखियाँ / कबीर
    • हमन है इश्क मस्ताना / कबीर
    • कबीर के पद / कबीर

    कबीर दास के नीति के दोहे?

    इसे सुनेंरोकेंप्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय। राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय।। जब मैं था तब हरि‍ नहीं, अब हरि‍ हैं मैं नाहिं।